बाड़मेर का दारूल ऊलूम गुलशन-ए-ख़दीज़तुल कुबरा
मुस्लिम बेटीयां भी उच्च शिक्षा तक जाएं
अब्दुल सत्तार सिलावट
भारत का मुसलमान शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है इसलिए देश की तरक्की की दौड़ में अंतिम पंक्ति में दिखाई देता है। इस बात को पिछले 70 साल से देश के राजनेता कहते आ रहे हैं और अब बड़े शहरों के सम्पन्न परिवारों के लड़के कॉलेज, विश्वविद्यालय में दिखाई देने लगे हैं। लेकिन हम राजस्थान के डेजर्ट क्षेत्र बाड़मेर में मुस्लिम महिला शिक्षा में पूरे देश के लिए ‘मॉडल’ बने दारूल ऊलूम गुलशन-ए-ख़दीज़तुल कुबरा की कामयाबी को आप तक पहुंचा रहे हैं।
मौलाना मीर मोहम्मद अकबरी। एक साधारण व्यक्तित्व। एक दशक तक पाली जिले के छोटे से आदिवासी क्षेत्र में बसे गाँव बेड़ा में मस्जिद में इमामत के साथ बच्चों को दीनी तालीम देकर जब वापस अपनी सरज़मीं बाड़मेर पहुंचे तब उन्होनें मुस्लिम बच्चीयों की दीनी तालीम के साथ दुनियावी तालीम की सोच के साथ केवल सात बच्चीयों को लेकर आवासीय मदरसा शुरु किया। जहां आज पश्चिमी राजस्थान के चार जिलों जैसलमेर, जोधपुर, नागौर और बाड़मेर के छोटे-छोटे गाँवों की अंतिम छोर पर गरीब मुस्लिम परिवारों की 147 लड़कियां दीनी तालीम के साथ आठवीं बोर्ड एवं दसवीं बोर्ड तक शिक्षा ले रही हैं।
बाड़मेर में दारूल ऊलूम गुलशन-ए-ख़दीज़तुल कुबरा बालिका आवासीय मदरसा राजस्थान सरकार के मदरसा बोर्ड में पंजीकृत है तथा किराये के मकान से 2009 में शुरू कर आज विशाल भवन में प्रत्येक दस छात्राओं पर एक स्टाफ के साथ कौमी इमदाद से चल रहा है। मदरसे में आधुनिक आवासीय सुविधा के साथ खाना पीना एवं शिक्षा पूर्ण रूप से निःशुल्क है।
दारूल ऊलूम के संस्थापक मौलाना मीर मोहम्मद अकबरी बताते हैं कि अपने माँ-बाप से दूर रहकर शिक्षा ले रही छात्राओं को घर जैसा प्यार और माहौल मिले इसलिए शिक्षण स्टाफ में दो जोड़े पति पत्नि भी है जो छात्राओं की शिक्षा के साथ उनकी निजी जरूरतों का भी ध्यान रखते हैं।
दारूल ऊलूम मुस्लिम महिला शिक्षा में देश भर में ‘मॉडल’ के रूप में पहचान बना रहा है जहां पिछले दिनों राजस्थान सरकार के मदरसा बोर्ड की चेयरपर्सन मेहरून्निशा ख़ान ने छात्राओं की प्रतिभा, शिक्षकों के समर्पण की प्रशंसा करते हुए छात्राओं को आधुनिक शिक्षा में प्रोत्साहन हेतु पाँच कम्प्यूटर देने की घोषणा भी की थी।
लड़कियां भी तालीम में बुलंदी छुए-मौलाना
दारूल ऊलूम के संस्थापक मौलाना मीर मोहम्मद अकबरी कहते हैं कि इस्लाम में औरत-मर्द को तालीम, ईबादत और ख़िदमत में बराबर के हक दिये गये हैं फिर हमारी बेटीयां मदरसे से दीनी तालीम या सरकारी स्कूल की पाँचवीं कक्षा तक पढ़ने के बाद घर की चार दीवारी में कैद क्यों हो जाये। उन्हें भी कॉलेज, विश्वविद्यालय तक पढ़ने का मौका मिलना चाहिये।
मौलाना अकबरी बताते हैं कि शहरों और कस्बों से दूर गाँवों में गरीबी, बेरोजगारी से जूंझ रहे मुस्लिम परिवारों की बेटीयों के उच्च शिक्षा के सपनों को साकार करने का हमारा मिशन दारूल ऊलूम की स्थापना करना है जिसे कौम की ईमदाद से चलाकर किराये के एक कमरे से आज संस्था के स्वयं के विशाल भवन तक पहुँचे हैं।
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