Friday, August 28, 2015

दिल्ली गये थे देश बदलने, ओटन लगे कपास!



अब्दुल सत्तार सिलावट            

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आपने दिल्ली के लाल किले से दो बार देश में साम्प्रदायिकता रोकने और देश के विकास में सबको साथ लेने का नारा ज़रूर दिया, लेकिन इस नारे का अंज़ाम भी 27 अगस्त 2015 को गुजरात में भड़की हिंसा को रोकने के लिए आप द्वारा की गई अपील की तरह बेअसर ही रहा और जिस गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़कर आप गुजरात मॉडल जैसा भारत बनाने दिल्ली की संसद में पहुंचे थे वहाँ जाकर आप विदेश यात्राएं, अपने राजनीतिक विरोधियों को घर बैठाने, छोटे-छोटे देशों से दोस्ती कर संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्यता का समर्थन जुटाने में लगे हैं। वहीं देश में नक्सलवाद, कश्मीरी अलगाववाद, पाकिस्तानी आंतकियों की घुसपैठ और अब आरक्षण की माँग पर आपके गुजरात को सेना के सुपुर्द करना पड़ा। आज सेना गुजरात में, कल महाराष्ट्र और परसों बिहार चुनाव में होगी तो फिर चीन और पाकिस्तान की सीमाएं कौन सम्भालेगा।
प्रधानमंत्री जी आप दिल्ली जाने के मकसद से भटक गये हैं। 'गये थे देश बचाने और ओटन लगे कपास' वाली कहावत को सिद्ध करने लग गये हैं। आप उस व्यापारी या उद्योगपति जैसे बन गये हैं जिसकी फैक्ट्री में मशीनें ज़ंग खा रही हो, उत्पादन बंद हो, मज़दूर हड़ताल पर हो, लेकिन फैक्ट्री मालिक मंडियों में दौड़ भाग कर अपना उत्पादन बेचने के लिए ऑर्डर बुकिंग करता हो। उसे इस बात की चिंता नहीं है कि फैक्ट्री बंद है, माल कहां से भेजेंगे। बस, वैसे ही आप दुनिया भर में भारत के योग, भारत की परमाणु और सैन्य शक्ति, विकास की योजनाओं का बखान कर विदेश में बसे भारतीयों से तालियां बजवा रहे हैं और घर में साम्प्रदायिकता, जातिवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद का ज़हर बढ़ता जा रहा है।
आपकी पार्टी के अनुसार देश का सबसे काला अध्याय 'आपातकाल' में इंदिरा गांधी ने अख़बारों पर सेंसरशीप, अपने राजनीतिक विरोध की ख़बरों को रोकने के लिए लगाई थी, वैसे ही आज समय आ गया है कि देश के सोशल मीडिया और अख़बारों से अधिक सबसे तेज, सबसे पहले, ब्रेकिंग शगुफे पेश करने वाले इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सीमाएं तय की जाये। आज टीवी न्यूज़ चैनलों पर एक व्यक्ति अपने दिल में भरा ज़हर मुसलमानों की घर वापसी, मुसलमान लड़कियों से शादी कर हिन्दू बना दो, मुस्लिमों की बढ़ती आबादी देश के हिन्दूओं के लिए ख़तरा जैसे साम्प्रदायिक ज़हर को बिना परिणाम सोचे देश को भ्रमित कर रहे हैं। इस ज़हर पर हिन्दू और मुसलमानों के बड़े धर्म गुरू, राजनेता, सांसद और जि़म्मेदार पदों पर बैठे लोग आग पर पानी डालने के बजाये टीवी चैनलों की अदालतों, सीधी बात, इन्टरव्यू में साम्प्रदायिकता पर पेट्रोल छिड़क रहे हैं। ऐसे ऐसे तर्क देते हैं कि सीधा साधा साफ दिल वाला भारतीय (हिन्दू और मुसलमान दोनों ही) भी इनके तर्क सुनकर भगवा और हरा रंग का चौला धारण कर साम्प्रदायिकता की बहस का सहभागी बन बैठता है।
टीवी चैनलों का दूसरा ताजा उदाहरण गुजरात आरक्षण आन्दोलन है जिसमें 25 अगस्त की रात अहमदाबाद में एक इलाके में छिटपुट झड़प हुई, लेकिन टीवी कवरेज की प्रतिक्रिया में पूरा गुजरात दूसरे दिन सिर्फ इसलिए जलना शुरू हो गया कि हार्दिक पटेल का बयान टीवी चैनलों पर दिखाया गया जिसमें हार्दिक पटेल ने कहा कि 'हमारे लोगों को पुलिस ने घरों में घुसकर मारा, गाडिय़ों के शीशे फोडे।' हालांकि यह बात सत्य थी लेकिन सभी टीवी चैनलों ने जिस प्राथमिकता से पुलिस बर्बता की कवरेज की, उसी का परिणाम सेना का फ्लैग मार्च और हार्दिक पटेल द्वारा पहले पुलिस बर्बरता में शामिल अधिकारी और कर्मचारियों को बर्खास्तगी की मांग और मज़बूत होकर गुजरात को शांत होने से रोक रही है।
साम्प्रदायिकता एवं आरक्षण आंदोलन की बेलगाम कवरेज के बाद टीवी पर चलने वाले विज्ञापनों पर भी एक नज़र डालें। कण्डोम के जो विज्ञापन पहले दूरदर्शन पर रात 11 बजे के बाद दिखाये जाते थे, उन विज्ञापनों को सुबह से शाम हर चैनल पर 15 से 30 मिनट के अन्तराल पर युवती को लगभग निर्वस्त्र समुद्र किनारे लहरों के पानी भीगोकर इन शब्दों के साथ दिखाया जा रहा है कि 'दिन भर करने का मन....'। अब ऐसे विज्ञापन जब आप दिन भर दिखाओगे तो फिर आबादी कंट्रोल पर चिंता और बहस करना तो छोडऩा ही होगा। एक विज्ञापन में बारात में घोड़े की नाल में जंग होने से घोड़ा 'हिनहिनाता' है और कम्पनी कहती है जंग निरोधक सीमेन्ट वाले घर में जंग की नो एंट्री। पिछले पाँच साल से जंग निरोधक सीमेन्ट का प्रचार शुरु हुआ है, जंग की सच्चाई तो ईश्वर जाने, लेकिन क्या इससे पहले बिना जंग निरोधक सीमेन्ट से बनी इमारतें अब गिर जाऐंगी।
प्रधानमंत्री जी, आप जिस राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं उसकी पहचान नैतिकता, देशभक्ति, हिन्दू रक्षा जैसे नारों से होती है। आपको गुजरात के मुख्यमंत्री से दिल्ली की संसद और प्रधानमंत्री तक पहुँचाने में देश के इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया की भागीदारी उल्लेखनीय एवं प्रसंसनीय है। लेकिन अब समय आ गया है कि मीडिया की कुछ मर्यादाएं, कुछ सीमाएं ज़रूर तय कर लेनी चाहिये अन्यथा बिहार चुनाव में मतदाताओं को भाजपा से जोडऩे के लिए टीवी चैनलों के लिए 'कण्डोम' का विज्ञापन बनाने वाली पीआर कम्पनीयां भाजपा के कमल को गुटखा, खैनी, माचिस, माथे की बिन्दिया के साथ कण्डोम के पैकेट पर भी कमल का निशान छापकर चुनाव प्रचार सामग्री की थैलीयों में नहीं डलवा देवें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Friday, August 21, 2015

गांव के वार्ड की आबादी वाले देशों के आवभगत में भारत के प्रधानमंत्री


चौदह देशों का फिपिक सम्मेलन

गांव के वार्ड की आबादी वाले देशों के आवभगत में भारत के प्रधानमंत्री


 अब्दुल सत्तार सिलावट

राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी में पिछले एक माह से 14 देशों की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की फिपिक समिट की तैयारी चल रही थी। जयपुर विकास प्राधिकरण, नगर निगम, पर्यटन विभाग के साथ सुरक्षा में तैनात एक सौ से अधिक आईपीएस, आरपीएस एवं दो हजार से अधिक जवान। 30 किलोमीटर एयरपोर्ट से होटलों तक सभी विभागों के सिविल इंजीनियर, इलेक्ट्रीक एक्सईएन के साथ सीनियर अधिकारी तैनात।
14 देशों के राष्ट्राध्यक्षों के ठहरने के लिए प्रदेश की सर्वाधिक सुविधायुक्त होटल रामबाग पैलेस, जयमहल पैलेस और राजपूताना शेरेटन में ठहरने और मेहमानों के खाने का प्रबन्ध। एयरपोर्ट से होटलों तक सरकार ने सड़क के रिफ्लेक्टर से लेकर ग्रीनरी एवं फुटपाथ का रंगरोगन एकदम नया कर दिया। एक रात में जयपुर शहर का छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा खड्डा भर दिया गया। शुक्रवार सुबह दिल्ली से मेहमान देशों के राष्ट्राध्यक्ष दो चार्टर प्लेन से सांगानेर के स्टेट हैंगर पर उतरे और उनका स्वागत हमारी मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने किया। राष्ट्राध्यक्षों की अगवानी, स्वागत, पधारो म्हारे देस के साथ स्वागत में रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन मेहमानों के लिए किया गया।
राष्ट्राध्यक्षों की सुरक्षा के लिए त्रिस्तरीय सुरक्षा घेरा। सड़कों पर वर्दीधारी। होटल एवं समिट में कुछ वर्दीधारी बाकी सिविल में। जबरदस्त सुरक्षा। एक दिन पहले गुरुवार को एयरपोर्ट से होटलों तक मेहमानों को कैसे लायेंगे इसका पूर्वाभ्यास भी किया गया।
अब एक नजर चौदह देशों की भौगोलिक एवं सामाजिक स्थिती पर डालकर हमारी मेहमान नवाजी पर करोड़ों के खर्च एवं सरकार की दूर दृष्टी देख लेते हैं। चौदह देशों में एक देश 'निउव' की आबादी मात्र 1190 है इस देश की विशेषता फ्रि वाई फाई। जो भारत के लिए प्रेरणा देने वाला देश है! 1190 में से 50 व्यक्ति भारत में आज अपने देश के गवर्नर जनरल के साथ जयपुर घूम रहे हैं। दूसरा देश 'नौरु' इसका क्षेत्रफल 21 वर्ग किलोमीटर है। इस देश के राष्ट्रपति बारोन वाक्या के स्वागत में हमारे प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, राजस्थान की मुख्यमंत्री 'पलक-पावड़े' बिछा रहे हैं! चौदह देशों में एक देश है 'टुवालु' क्षेत्रफल 26 वर्ग किलोमीटर देश की आय का साधन इन्टरनेट डोमियन नेम डॉट टीवी, वर्ष भर की आय 22 लाख डॉलर। एक देश है 'पालाउ' क्षेत्रफल 466.55 वर्ग किलोमीटर। इस देश के राष्ट्रपति टामनी रेमेंगगेशन ने सबसे पहले परमाणु हथियारों के स्टोर और इस्तेमाल के खिलाफ घोषणा की है इसलिए हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी इस देश से प्रभावित हो गये और सम्भवत: प्रेरणा भी ले सकते हैं। चौदह देशों में एक देश मार्शल आइलैण्ड क्षेत्रफल 181 वर्ग किलामीटर इनके साथ कुक आइलैण्ड क्षेत्रफल 240 वर्ग किलोमीटर। अब तीन देश टोंगा, माइक्रोनेशिया और किरिबाटी इन तीनों की समान आबादी एक लाख तीन हजार से पांच हजार तक की है।
चौदह देशों के विशाल समिट में मात्र दो देश फिजी (आबादी 8.58 लाख) और पोपिया न्यू जिनी (70.59 लाख) बड़े देश है जबकि बाकी बारह देशों की आबादी और क्षेत्रफल से दस गुना बड़ा क्षेत्रफल और आबादी अजमेर नगर निगम की है। जहाँ मेयर के चुनाव के लिए भाजपा के पार्षदों में दो धड़े बनकर एक बागी प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इसी प्रकार राजस्थान के कई नगर परिषदों एवं पालिकाओं में भी सत्ता दल भाजपा के पार्षदों में गुटबाजी के कारण चेयरमेन पद निर्दलीयों और कांग्रेस की झोली में जा रहे हैं, लेकिन भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे इतने 'बड़े-बड़े' देशों के राष्ट्राध्यक्षों की अगवानी में व्यस्त हैं इसलिए भाजपा के अन्दरूनी झगड़े में हस्तक्षेप भी नहीं कर पा रही है। जबकि सच्चाई यह है कि अजमेर नगर निगम की बगावत में वसुन्धरा राजे हस्तक्षेप कर दें तो यह सीट बच सकती है, ऐसा ही राजस्थान की कई नगर परिषदों और पालिकाओं में भी भाजपा का बोर्ड बनाने के लिए मुख्यमंत्री स्वयं या इनके नाम से एक फोन की आवश्यकता है जो भाजपा के बागीयों या निर्दलीयों को भाजपा के बोर्ड बनाने में मदद दिलवा सकते हैं। खैर, मुख्यमंत्री चौदह देशों के राष्ट्राध्यक्षों की 'आव-भगत' में व्यस्त हैं। पालिका चुनाव तो आते-जाते रहते हैं। इतने बड़े-बड़े देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री गवर्नर जनरल की आव-भगत का मौका बार-बार थोड़े ही मिलता है!
हमारे प्रधानमंत्री नेरन्द्र मोदी के विदेश दौरों के बाद तथा हमारे देश की विदेश नीति के चाणक्यों की दूर दृष्टी और देश की अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के बारे में हमारे बढ़ते कदमों की पहचान आज राजस्थान में हो रहे चौदह देशों की अन्तर्राष्ट्रीय समिट से ही लगा सकते हैं। इन देशों से हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आर्थिक समझौतों की फाइलों पर दस्तखत कर राष्ट्राध्यक्षों के साथ 'आदान-प्रदान' करते फोटो भी खिचवाऐंगे? क्या इन देशों में हमारे उद्योगपति निर्यात कर गिरते रूपये का स्तर सुधार लेंगे? फिपिक सम्मेलन में आये चौदह देश यदि भारत की पाकिस्तान या चीन से ईश्वर नहीं करे, कभी युद्ध हो जाये तो क्या यह देश अपनी सेना, इन देशों के लड़ाकू विमान या थल सेना और पनडुब्बीयां भेजकर हमारे देश की मदद करने की स्थिती में हैं? क्या भारत के स्पेस सेन्टर श्री हरिकोटा से इन देशों के रॉकेट छोड़कर भारत को आर्थिक लाभ हो सकता है या हम इन्हें अपने देश से आलू, प्याज, गेहूँ, काली मिर्च भेजकर विदेश व्यापार से मुद्रा को मजबूत कर सकेंगे?
चौदह देशों की फिपिक समिट की कवरेज कर रहे एक टीवी चैनल की न्यूज एंकर ने जयपुर में खड़े अपने रिपोर्टर से जब इस समिट का लाभ पूछा तब इन देशों के क्षेत्रफल और आबादी से अनभिज्ञ रिपोर्टर का जवाब आश्चर्य चकित करने वाला था। रिपोर्टर ने कहा 'प्रधानमंत्री मोदी की दूर दृष्टी और भाजपा की नई सरकार की विदेश नीति का परिणाम है यह विशाल अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन। शाम को विदेश व्यापार के बहुत से समझौते प्रधामंत्री मोदी की उपस्थिती में होंगे। रिपोर्टर आगे कहता है कि चौदह देशों के सम्मेलन से चीन जैसे देश का बढ़ता वर्चस्व इस क्षेत्र में खत्म हो जायेगा।' अब आप ही अंदाज लगाऐं कि हजार बारह सौ की आबादी और 21 वर्ग किलामीटर क्षेत्रफल वाले एक दर्जन देशों के लिए हमारे एक वार्ड की राशन की दुकान ही बहुत है। ऐसे देशों को हम क्या तो बेचेंगे और इनके साथ खड़े होने से चीन को क्या फर्क पड़ेगा?

यह लेख फिपिक सम्मेलन की आलोचना या इसकी उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए नहीं है, बल्कि भारत जैसे 130 करोड़ के देश के नये राजनेता सैकड़ों करोड़ रूपये और दो दिन तक केन्द्रीय एवं राजस्थान सरकार की पूरी मशीनरी को चौदह देशों के मेहमानों के आवभगत में 'पलक पावड़े' बिछाकर किस दिन की तैयारी कर रहे हैं। हमें इन देशों से किस चीज की उम्मीद रखनी चाहिए और हमारे राजनेताओं को इन देशों को गले लगाने के पीछे कौन सा छुपा रहस्य दिखाई दे रहा है? इस पर आप भी विचार करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Monday, August 3, 2015

हम देश को किस ओर ले जा रहे हैं...


अब्दुल सत्तार सिलावट                    
जुलाई 2015 का आखिरीे सप्ताह। देश के कुछ राज्यों में भारी बारिश से तबाही। इस बीच पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहब का निधन और फ़ांसी की सजा पर राष्ट्रीय बहस। इस सब के बीच 30 जुलाई 2015 की पूर्व रात आज़ादी के बाद पहली बार सुप्रीम कोर्ट में रात में सुनवाई (बाद में पता चला यह सुनवाई दूसरी बार थी)। मुम्बई बम धमाकों के आरोपी की फ़ांसी को उम्र कैद में बदलने की 'पुकार' में मुसलमानों से अधिक 'सेक्युलर' हिन्दू नेताओं और समाज के प्रतिष्ठित क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट में 'गुहार' लगाई। खैर, इस बीच फ़ांसी हो गई और सुरक्षा एजेन्सीयों ने बहुत ही 'दुस्साहसपूर्ण' निर्णय कर 'डेथ-बॉडी' मुम्बई तक पहुंचाकर इस घटना का पटाक्षेप कर दिया और मीडिया पर आरोप लगे कि देश के पूर्व राष्ट्रपति के निधन, सुपुर्द-ए-ख़ाक से अधिक कवरेज फ़ांसी की घटना के 'चलचित्र' को दी गई।
अगस्त के पहले दिन से शुरु होता है भारत के मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए 'ख़तरा' साबित करने का इलेक्ट्रोनिक मीडिया का 'मिशन' और इस आग में घी की पहली धार डालते हैं त्रिपुरा राजभवन में बैठे महामहिम राज्यपाल। महामहिम त्रिपुरा में भारी बारिश की तबाही को भुलकर फ़ांसी के बाद मुम्बई में याकुब मेमन की मय्यत में शामिल मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताकर ही शांत नहीं होते हैं। यह सलाह भी देते हैं कि मय्यत में शामिल मुसलमानों पर कड़ी नज़र रखी जाये। यह लोग आईएसआईएस में शामिल हो सकते हैं। पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से उठाकर भाजपा की केन्द्र सरकार ने त्रिपुरा के राज्यपाल जैसे पद पर जिन्हें बैठाया है उनमें बैठा मुस्लिम विरोधी कट्टरपंथी इतने बड़े पद की गरीमा को कलंकित कर रहा है। महाराष्ट्र और मुम्बई त्रिपुरा की राजधानी या त्रिपुरा की सीमा में नहीं आते हैं और त्रिपुरा के राज्यपाल के पास महाराष्ट्र का अतिरिक्त प्रभार भी नहीं है फिर उन्हें मय्यत में शामिल हजार-पाँच सौ मुसलमानों से सवा सौ करोड़ के भारतवासियों की सुरक्षा की चिन्ता का 'ठेका' किसने दिया?

त्रिपुरा के महामहिम की अकारण चिन्ता की मशाल को हमारे इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने हाथों हाथ सम्भाल लिया और आईएस के काले झण्डे, तालिबान के आतंकी कमाण्डों के दिवारों पर दौड़ते दृश्य और बेगुनाहों पर बंदूकें तानकर खड़े आतंकियों के 'रेडिमेड क्लिप' के साथ ऊँची आवाज़ में स्क्रिप्ट पढ़कर एक भय का माहौल तैयार करना शुरु कर दिया। आईएस और तालिबान सीरिया, इराक और क्यूबा जैसे देशों के लिए बहुत बड़े हमलावर हो सकते हैं, लेकिन भारत जैसे विशाल देश की ओर आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी नहीं कर सकते। हमारे टीवी चैनल आईएस और तालिबान को जाने अन्जाने निमन्त्रण के साथ यह भी बता रहे हैं कि भारत का मुसलमान याकुब मेमन को फ़ांसी के बाद देश की कानून व्यवस्था और सुरक्षा एजेन्सीयों से नाराज़ ही नहीं आक्रोशित भी है। जबकि भारत के मुसलमान ने ना तो संसद पर हमले के आरोपी आतंकी अफज़ल गुरु को फ़ांसी पर कोई एतराज़ किया था और ना ही मुम्बई हमले के आरोपी पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब की फ़ांसी पर कोई एतराज़ किया था, बल्कि भारत का मुसलमान तो ऐसे आतंकियों को मौत की सज़ा पर ख़ुश हुआ जिन्होनें कौम का नाम बदनाम किया।
मीडिया याकुब मेमन की फ़ांसी पर अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में पुरे घटनाक्रम को ऐसे पेश करता रहा जैसे वो आतंकी संगठनों को निमन्त्रण दे रहा हो कि ऐसे में यहाँ आप 'प्रवेश' करते हैं तो भारत के मुस्लिम नौजवान आपके साथ मिलकर भारत के लाल किले पर तिरंगे के साथ आईएस का काला झंडा लहराने में भी मदद कर सकते हैं। जबकि हकीकत यह है कि भारत के अधिकतर मुस्लिम नौजवान बेरोज़गार हैं, उन्हें आईएस, याकुब की फ़ांसी या आतंकी गतिविधियों में कोई रूचि नहीं है। इन मुस्लिम युवाओं को इनके माँ-बाप देर तक सोने पर जबरन उठाकर मज़दूरी के लिए भेजते हैं और यह नौजवान भी अपने हाथ-खर्च जितनी 'दिहाड़ी' मजदूरी कर शाम को लौट आता है। एक सर्वे के मुताबिक भारत का मुसलमान 'सेल्फ एम्प्लॉयड' है वो अपनी रोजी रोटी मेहनत मजदूरी कर कमाता है और खाता है। रात का खाना खाने के बाद गली के बाहर चाय की होटल पर लगे टीवी पर यही नौजवान क्रिकेट मैच या कोई पुरानी फिल्म देखकर लौट आता है। इससे अधिक दोस्तों ने रोक दिया तो रात ग्यारह बजे तक बजरंगी भाईजान या करीन की ख़ूबसूरती पर 'चटकारे' लेकर लौट आते है।
याकुब को फ़ांसी क्यों हुई। 30 जुलाई की रात को देश के 'समझदार' लोग क्यों जागे। इन बातों से आम मुसलमान को कोई लेना देना नहीं है। वह तो अपनी पेट और परिवार की आग बुझाने में रोज सुबह उठकर मजदूरी की तलाश में भटककर अपनी जि़न्दगी पूरी कर रहा है जबकि देश के समझदार राजनेता, साम्प्रदायिकता की खेती करने वाले 'किसान' (हिन्दू-मुस्लिम दोनों किसान) मुसलमानों की बढ़ती आबादी के आंकड़ों को लेकर चुनावों से पहले ऐसा माहौल बना देते हैं कि 2050 तक मुसलमान भारत में हिन्दूओं से अधिक हो जायेंगे इसलिए हमारी पार्टी को 'वोट' दो। हिन्दूओं का वोट तो मुसलमानों आबादी का डर दिखाकर एक झंडे के नीचे ले आने में सफल हो गये, लेकिन मुसलमानों की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए साम्प्रदायिक दंगों में हजार पाँच सौ को मार देना, आईएसआईएस-तालिबान जैसे आतंकी संगठनों से जुड़ने के आरोपों के अलावा भी मुसलमानों को देशभक्त बनाने में 'दुबले' हो रहे नेताओं और संगठनों को कुछ करना चाहिये!
मीडिया के बड़े घरानों से अनुरोध है कि मैनेजमेन्ट इंस्टीट्यूट में स्टूडेन्ट्स को जीवन के सफलता के 'गुर' बताने के साथ ही टीवी चैनल के 'कर्मचारियों' को भी देश में शांति, कौमी एकता बनाये रखने जैसे कार्यक्रम और भाषा का उपयोग करने के 'गुर' भी सिखाएं। 30 जुलाई मुसलमानों के सबसे बड़े 'नेता' याकुब मेेमन को फ़ांसी के बाद देश के सबसे अधिक लोकप्रिय चैनलों ने मुसलमानों के लोकप्रिय 'नेता' औवेसी साहब और हिन्दूओं के सबसे अधिक लोकप्रिय 'नेता' साक्षी महाराज को विशेष सम्मान देते हुए एक-एक घंटे के इन्टरव्यू प्रसारित किये। इन नेताओं ने अपने समाज को क्या संदेश दिया इस बात से टीआरपी बढ़ाने में सक्रिय टीवी चैनल के विद्वान पत्रकार बेफिक्र थे, लेकिन जाने अन्जाने में देश की जनता को टीवी चैनल के कार्यक्रमों से इतना पता चल गया कि अब भारत में मोदी से मुकाबला करने वाला मुसलमानों का नेता असदुद्दीन औवेसी ही है तथा कट्टरपंथी हिन्दू नेताओं की दोड़ में साक्षी महाराज को चैनल वालों ने सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है।
देश की जनता के साथ मेरे देश की सुरक्षा एजेन्सीयों के आला अधिकारी भी टीवी चैनलों के भडकाऊ कार्यक्रमों को देखते हैं, लेकिन इन्हें रोकने, इन पर अंंकुश लगाने की पहल तब तक नहीं करते हैं जब तक देश में कोई बड़ा दंगा नहीं हो जाता है। सुरक्षा एजेन्सीयों के प्रभाव का एक नमूना फ़ांसी के बाद याकुब मेमन के 'जनाज़े' को टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर नहीं दिखाने के आदेश की पालना इतनी सख़्ती से हुई कि आज तक टीवी चैनल तो दूर बेकाबू सोशल मीडिया पर भी किसी 'सर-फिरे' ने मय्यत की क्लिप डालने का साहस नहीं किया। सुरक्षा एजेन्सीयों के कर्णधार टीवी चैनलों पर देश की जनता के साथ भडकाऊ भाषणों से खिलवाड़ करने वाले हिन्दू और मुसलमान नेताओं के बढ़ते प्रवेश को रोकें। भले ही इसके लिए मीडिया को 'कान' में 'ऑफ दी रिकॉर्ड' आदेश भी देना पड़े। ऐसा देश की कौमी एकता और शांति के लिए ज़रूरी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)