Friday, May 29, 2015

हाय रे सरकार की 'मजबूरियां'...


अब्दुल सत्तार सिलावट                                          
मुबारक हो राजस्थान की सात करोड़ मजबूर जनता को। पिछले आठ दिनों से राजस्थान को देश के मुख्य भागों से जोडऩे वाले रेल और सड़क मार्ग सिर्फ बाधित ही नहीं बल्कि किसी भी समय सुरक्षा प्रहरियों के संगीनों से गोलियों की आवाजों के बीच आशंकीत था। ईश्वर ने गुर्जर नेताओं और मजबूर सरकार के प्रतिनिधियों को सद्बुद्धि दी कि राजस्थान की पावन धरती एक बार फिर कलंकित होने से बच गई। बेगुनाह और भोलेभाले आन्दोलनकारियों की लाशों एवं सामूहिक चिताओं की लपटों के दृश्य टीवी न्यूज चैनलों के कैमरों से बच गये। मुबारक उन भोलीभाली माताओं, बहनों और सुहाग की रक्षा की पुकार करने वाली उन माताओं की गोद, बहनों की राखी और सिन्दूर के सुहाग की रक्षा देवनारायण भगवान ने की है। जिनके बेटे-भाई और पति पुलिस के संगीन पहरों में रेल पटरियों के क्लिप उखाड़ रहे थे। नेशनल हाईवे के डिवाईडर की रैलिंग तोड़ रहे थे और इससे आगे बढ़कर सड़क चौराहों को जाम कर रहे थे। मुबारक हो गुर्जर आन्दोलन के उन नेताओं को जिनके बेटे-बेटियां-पोता-पोती और परिवार के लोग दिल्ली-गुडगांव-नौएडा के गगनचुम्बी बिल्डिंगों के एयरकंडिशन फ्लैटों से निरन्तर मोबाइल पर 'सम्भलकर' रहने की हिदायतों के साथ इन नेताओं की चिन्ता कर रहे थे।
राजस्थान की आबादी का मात्र 8 प्रतिशत 55 से 60 लाख गुर्जर समाज (आंकड़े गूगल के अनुसार) और इसमें से भी मात्र 5 प्रतिशत यानी तीन लाख गुर्जर ही पटरियों, सड़क चौराहों और आन्दोलन को भीड़ में बदलने में सक्रिय बताये गये। लेकिन 163 विधायकों के बहुमत वाली भाजपा की वसुन्धरा सरकार, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के चाणक्य, शिवसेना-विश्व हिन्दू परिषद् के जांबाज और खूंखार-उग्र नौजवानों की फौज, हिन्दू समाज की रक्षा के अन्तराष्ट्रीय नेता प्रवीण तोगडिय़ा, आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत जी, जो हर दिनों हर पखवाड़े राजस्थान के किसी महानगर में पथ प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं। इनमें से कोई तो साहस करता एक बार सिकन्दरा और पीलूपुरा की पटरियों पर पथ संचलन करने का, तोगडिय़ा जी देशभक्ति के भाषण ही सुना आते। क्या गुर्जरों में आरएसएस से जुड़े लोग नही हैं? शिवसेना-विश्वहिन्दू परिषद् से जुड़े गुर्जर भी नहीं है? क्या सभी गुर्जर कांग्रेसी मान लिये गये? सचिन और गहलोत के समर्थक थे? 163 विधायकों में से मात्र तीन राजेन्द्र राठौड़, भड़ाना और चतुर्वेदी ही सरकार का प्रतिनिधित्व करते रहे। बाकी भाजपा विधायक, संघ के नेता, शिवसेना, बजरंगदल, विश्व हिन्दू परिषद् के राज्य स्तर के नेताओं से पीलूपुरा की पटरियों पर बैठे अपने ही भाईयों से समझाईश करने का साहस नही जुटा पाये।
हिन्दू धर्म के रक्षक इन नेताओं को सिकन्दरा के जाम में फंसी 'एम्बुलेन्स' के सायरन की आवाजों के साथ बेगुनाह मरीज की टूटी सांसों और परिवार की र्ददभरी चीख भी सुनाई नहीं दी। बदन को झुलसाती 47 डिग्री गर्मी में गोद में बच्चा और सर पर सामान के बैग लिये कई किलोमीटर तक लडख़ड़ाते कदमों से बसों तक पहुंच रही मासुम और उच्च परिवार की औरतों के टीवी दृश्य देखकर भी हमारे नेता गुर्जरों को समझाने नहीं पहुंच पाये।
आजादी के बाद पहली बार राजस्थान में अभुतपूर्व बहुमत और केन्द्र में भी अपनी ही पार्टी वाली सरकार को गुर्जर आन्दोलन के सामने मजबूर, बेबस और लाचार हालत में देखकर शर्मिंदगी के साथ असुरक्षित भविष्य भी दिखाई दिया। हजारों जवान पुलिस के। अर्धसैनिक बलों की टुकडियों के पहुंचने के समाचारों की टीवी स्क्रीन पर रेग्युलर लाईन (पट्टी) चलना।
राजस्थान उच्च न्यायालय की फटकार को झेलते प्रदेश के सर्वोच्च पदों पर बैठे अधिकारी। सरकार के चाणक्यों के फैसलों का इन्तजार करती सुरक्षा एजेन्सीयां। सब मजबूर, लाचार, बेचारगी की घुटन के साथ आठ दिन तक तनाव और आक्रोश के बीच गुरूवार की शाम राजस्थान सचिवालय से खुश खबरी के साथ राहत की सांस और अच्छे दिनों की शुरूआत के साथ अगली सुबह सुनहरी किरणों की उम्मीद के साथ शुरू हुई।

गुर्जरों के बाद आन्दोलनों की कल्पना...
ईश्वर राजस्थान के जाटों, राजपूतों, ब्राह्मणों एवं ओबीसी की जातियों को आरक्षण की मांग मनवाने के लिए गुर्जर आन्दोलन से प्रेरणा लेने की सोच पैदा होने से रोकें अन्यथा गुर्जर तो मात्र 50 किलोमीटर क्षेत्र में ही अपने को सुरक्षित मानते हैं, जबकि अन्य जातियां पूरे प्रदेश के गांव-ढ़ाणी तक करोड़ों की तादाद में फैली है। इन सभी जातियों ने गुर्जर आन्दोलन में राजस्थान सरकार की कानून व्यवस्था, सरकार की मजबूरी, सुरक्षा बलों के बंधे हाथ, न्यायालय की आदेशों का माखौल उड़ते देखा है। राजस्थान के विकास में अपनी 'आहुति' दे रही अकेली मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे इन हालात में रिसर्जेंट राजस्थान में लाखों करोड़ के निवेश वाले 'एमओयू-साईन' भी करवा लें, तब भी मेरे राजस्थान का भविष्य कितना उज्वल होगा आप स्वयं ही अनुमान लगा लेवें।

बाहुबलियों के आगे कानून 'नतमस्तक'
आन्दोलन में बसे जलाओ, चाहे पटरियां उखाड़ो, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर पथराव करो। जो सामने आये उसे मारो-पीटो। पुलिस चाहे सरकारी काम में बाधा का मुकदमा करे या राजद्रोह का मुकदमा बना लेवें। डरने के कोई बात नहीं। सरकार से जब भी समझौता वार्ता होगी सबसे पहली शर्त आन्दोलन के दौरान किये मुकदमे वापस लिये जायें। और सरकार इस पहली शर्त को बिना तर्क दिये मान जाती है। बात गुर्जर आन्दोलन की नहीं है। इससे पहले भी जितने आन्दोलन हुए सभी में मुकदमे वापस लेने का फार्मूला लागू होता रहा है और यही कारण है कि आन्दोलनकारी सरकारी सम्पत्ति, जन-धन हानि बेहिचक करते हैं।

राजद्रोही बनाम देशभक्त
राजस्थान सचिवालय में राज्य के सर्वोच्च सुरक्षा एजेन्सीयों के मुखिया, कानून के रखवाले एटॉर्नी जनरल ऑफ राजस्थान, सरकार की मंत्री, सरकार चलाने वाले उच्च अधिकारियों के सामने की टेबल पर गुर्जर आन्दोलन में पुलिस द्वारा राजद्रोह के मुकदमों में अपराधी बनाये नामजद आरोपी समझोता वार्ता में अपनी शर्तें मनवा रहे थे और हमारी पूरी सरकार और सरकार के देशभक्त मंत्री, अधिकारी राजद्रोह के आरोपीयों के सामने हाथ बांधे, सर झुकाये उनकी शर्तें स्वीकार कर रहे थे।

...लेखक के नाम-जात पर न जाये
गुर्जर आन्दोलन की इस समीक्षा को एक पत्रकार की बेबाक कलम और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के धर्मपालन करने वाली नजर से पढ़ें। लेखक का नाम भले ही अब्दुल सत्तार सिलावट है, लेकिन पत्रकारिता की निष्पक्ष लेखनी में देशभक्ति, समाज की सुरक्षा की चिन्ता, कानून और प्रशासन के साथ न्यायालयों का सम्मान बनाये रखने के लिए पाठकों का ध्यानाकर्षण ही मुख्य उद्देश्य रहता है। पत्रकार की निष्पक्ष कलम को ही लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है और 2002 के गुजरात दंगों से लेकर मुजफ्फर नगर के दंगों तक मुसलमानों का पक्ष हिन्दू पत्रकारों, टीवी चैनलों ने ही रखा है। इसलिए पत्रकार जाति-मजहब से उपर उठकर समाज का सही दर्पण पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करता है।-सम्पादक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Wednesday, May 27, 2015

ओम माथुर: राजस्थान की ओर बढ़ते कदम...



अब्दुल सत्तार सिलावट                                   
बृज की भूमि मथुरा के पास दीनदयाल धाम की विशाल रैली से जब पूरा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सफलतम एक वर्ष के भाषण आधे मन से सुन रहा था उस समय राजस्थान की जनता इस बात से खुश थी कि नरेन्द्र मोदी के मंच पर राजस्थान के भाजपा नेता ओम माथुर को सिर्फ मंच पर कुर्सी के पास लेकर ही नहीं बैठे हैं बल्कि ठहाके लगा-लगाकर हंसते हुए पूरे देश को संदेश दे रहे हैं कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे नजदीक आधा दर्जन लोगों की लिस्ट में हमारे राजस्थान के ओम प्रकाश माथुर साहब यूपी चुनाव के प्रभारी होने के नाते सबसे नजदीक ही नहीं बल्कि दोस्ताना रिश्ते वाली टीम के सदस्य भी हैं।
मथुरा रैली से जब ड्रोन कैमरा विशाल जनसमूह की क्लिप टीवी चैनलों को दे रहा था उस समय राजस्थान की जनता को मंच पर लगे कैमरे से ओम जी भाई साहब के साथ मोदी जी की अगली तस्वीर देखने का उत्साह था और अब ओम माथुर के राजस्थान के सीएमओ की ओर बढ़ते कदमों के शगूफों को पुख्ता जमीन भी मिल रही थी।
नरेन्द्र मोदी के दोस्त, मुख्यमंत्री चुनावों में अब तक गुजरात की कमान सम्भालने वाले ओम प्रकाश माथुर ने पिछले एक साल में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने के बाद पांच प्रदेशों में भाजपा की सरकारों को एक तरफा जीत दिलवाकर साबित कर दिया कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के चुनाव की बागडोर ओम माथुर को बहुत सोच समझकर दी गई है। इस निर्णय में सिर्फ पार्टी-प्रधानमंत्री ही शामिल नहीं है बल्कि भाजपा सरकार के रिमोट कंट्रोल कहे जाने वाले 'नागपुर' के चाणक्यों की भी एकतरफा सहमति भी शामिल है।
राजस्थान की राजनीति में ओमप्रकाश माथुर ने 2008 में एक धमाकेदार 'एन्ट्री' की थी, लेकिन उस समय केन्द्र से किसी बड़े नेता का समर्थन नहीं था। राजस्थान की राजनीति में वसुन्धरा राजे के सामने ओमजी भाई साहब की केवल संघ नेता की पृष्ठभूमि थी और इसी टकराव ने 2008 में भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था, लेकिन इस बार पिछले छ: माह से चल रहे 'शगूफों' में ओमप्रकाश माथुर के राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने की बात को मथुरा की रैली के साथ ही राष्ट्रीय भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह द्वारा राजस्थान के एक बड़े अखबार को दिये इन्टरव्यू में स्पष्ट संकेत दिये गये हैं कि राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री ओमप्रकाश माथुर ही होगा। राजस्थान की मौजूदा सरकार को हलचल या खलबली से बचाने के लिए अमित शाह ने यूपी चुनाव के बाद और दो साल का समय जरूर बताया है, जबकि अब स्वयं ओमप्रकाश माथुर भी ज्यादा इन्तजार के 'मूड' में नहीं है जबकि दूसरी ओर राजस्थान प्रदेश भाजपा की 104 सदस्यों वाली कार्यकारिणी में राजस्थान में सांसद-विधायक-मंत्री पद पर भी नहीं होते हुए ओम माथुर को कार्यकारिणी में मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के बाद स्थान दिया गया है यह बात भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के यूपी चुनाव के बाद ओम माथुर के राजस्थान प्रवेश को झूठला रही है। ओमजी भाई साहब की राजस्थान वाली टीम भी मौजूदा सरकार से दूरियां बनाकर ओमजी भाई साहब के शपथ ग्रहण समारोह में आतिशबाजी करने का इन्तजार कर रही है।
राजस्थान भाजपा प्रदेश कार्यालय में मोदी सरकार के एक साल सफलता के कार्यक्रमों में ओम माथुर समर्थक भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। यही कार्यकर्ता पार्टी कार्यक्रमों में कल तक पीछे की लाईन में 'अनमने' भाव से खड़े रहकर पार्टी कार्यकर्ता होने की 'रश्म' अदायगी करते थे वे ही ओम जी समर्थक मथुरा की विशाल सभा में नरेन्द्र मोदी-ओम माथुर की दोस्ती की झलक से इतने उत्साहित हैं कि अब हाथ जोड़कर नमस्ते या हाथ मिलाकर अभिवादन ही नहीं करते हैं बल्कि अपनी टीम के कार्यकर्ता को खींचकर गले लगाते हैं और ऊंची आवाज में बोलते है 'भाई साहब, अब अच्छे दिन सामने दिखाई दे रहे हैं।'
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मंत्रिमण्डल में राजस्थान का प्रतिनिधित्व लेने की बेरूखी से मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और नरेन्द्र मोदी के बीच बेरूखी की चर्चा सिर्फ राजनैतिक गलियारों तक ही सिमित नहीं थी बल्कि प्रशासनिक हल्कों में भी इसे गम्भीरता से लिया गया था और परिणाम पिछले एक साल से सरकार की गति 'झील के ठहरे पानी' की तरह निष्क्रिय ही दिखाई देती रही है।
मथुरा की विशाल रैली में नरेन्द्र मोदी-ओम माथुर के हंसी के ठहाके और उसी दिन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री के लिए ओम माथुर के नाम पर सकारात्मक संकेतों ने राजस्थान में मौजूदा सरकार द्वारा किनारे किये गये आईएएस, आईपीएस एवं उच्च अधिकारियों में आशा की किरण पैदा कर दी है और इन अधिकारियों ने ओम माथुर से जुड़े विधायकों, भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं तक पहुंचने के माध्यम ढूंढने शूरू भी कर दिये हैं।
खैर: राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री ओमप्रकाश माथुर बने या यह बातें शगूफों की कड़ी में खत्म हो जाये, लेकिन इतना निश्चित है कि मौजूदा वसुन्धरा सरकार के मंत्रियों, प्रशासनिक टीम में एक बार निराशा एवं अनिश्चितता की लहर राजस्थान के विकास को जरूर धीमा कर देगी और पिछले छ: माह के एक तरफा प्रयासों से अक्टूबर में होने वाले 'रिसर्जेंट राजस्थान' में निवेश करने का मन बना चुके उद्यमियों को मौजूदा बदलते समीकरणों में अपने निवेश को राजस्थान में लाने के निर्णय पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर सकते हैं।
राजस्थान के विकास के लिए स्थिर, मजबूत और केन्द्र सरकार के साथ अच्छे समन्वय वाली सरकार की जरूरत है। अब देखना यह है कि मौजूदा मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे आगे बढ़कर नये बन रहे समीकरणों को तोड़ती हैं या ओमप्रकाश माथुर की झोली में प्रबल बहुमत वाली राजस्थान सरकार आती है, यह तो भविष्य ही बतायेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Sunday, May 24, 2015

गुर्जर आरक्षण आन्दोलन: वसुन्धरा सरकार के खिलाफ षडय़ंत्र?


बैंसला के हाथों से निकली आन्दोलन की कमान

अब्दुल सत्तार सिलावट                                                                                                          
गुर्जर आरक्षण के लिए 21 मई को बुलाई महापंचायत का अचानक उग्र आन्दोलन का रूप लेना, पटरियों पर गुर्जरों का धरना, रेल यातायात बाधित करना, गुर्जरों की समन्वय समिति से ओबीसी एवं अन्य जाति के लोगों के नाम काटना। इसके पीछे गुर्जरों को आरक्षण दिलवाने से अधिक राजस्थान की लोकप्रिय भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को हटाने के षडय़ंत्र की भूमिका नजर आ रही है। गुर्जरों के नये नेताओं को दिल्ली में बैठे वसुन्धरा राजे विरोधी नेताओं का सिर्फ संरक्षण ही नहीं मार्गदर्शन भी मिलता दिखाई दे रहा है। शांत महापंचायत को उग्र आन्दोलन में बदलकर, रेल पटरियों को उखाडऩा, बसों में तोडफ़ोड़, सरकारी अधिकारियों पर पथराव। यह सभी हथकंडे सरकार को आन्दोलनकारियों पर सख्ती करने, लाठीचार्ज या फिर गोलीकाण्ड के लिए उकसाने की ओर बढ़ते कदम हैं।
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे देश-विदेश से राजस्थान में औद्योगिक निवेश के लिए दिन-रात अभियान चलाकर अक्टूबर 2015 में होने वाले रिसर्जेंट राजस्थान को सफल बनाकर नये कीर्तिमान स्थापित करना चाहती हैं जबकि वसुन्धरा राजे विरोधीयों को डर है कि रिसर्जेंट राजस्थान की सफलता के बाद पांच साल तक राजस्थान में वसुन्धरा सरकार को कोई नहीं हटा पायेगा। इसलिए गुर्जर आन्दोलन को दिल्ली में बैठे राजे विरोधी नेता उग्र गुर्जर नेताओं के हाथों में देकर राजस्थान की शांति को एक बार फिर 'बदनाम' करवाने के प्रयासों में लगे दिखाई दे रहे हैं।

गुर्जर आरक्षण की मांग पर रणनीति के लिए बुलाई महापंचायत कुछ घंटों में रेल पटरियों पर पहुंचकर उग्र आन्दोलन में परिवर्तित होने तथा गुर्जर आरक्षण के एकमात्र नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के रेल पटरियों से भी मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के प्रति 'नरम' बयानबाजी और आरक्षण के लिए सरकार द्वारा ठोस आश्वासन की मांग गुर्जरों के नये नेताओं को पसन्द नहीं आई तथा सरकारी प्रतिनिधियों से बात करने के लिए बनाई गुर्जर नेताओं की लिस्ट में बीस गुर्जर नेता थे जो अन्त में शनिवार को 26 तक पहुंच गये। गुर्जरों के नये नेताओं की पहली शर्त कर्नल किरोड़ी को सरकारी वार्ता में शामिल नहीं कर पटरियों पर ही बिठाये रखना तथा दूसरी शर्त सरकार से बात भी पटरीयों पर ही होगी। सरकार ने जयपुर की जिद्द छोड़कर पटरियों से बयाना आईटीआई तक गुर्जरों को आने के लिए राजी किया, लेकिन कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को आन्दोलन में कूदे नये गुर्जर नेताओं की नियत पर शक हो गया कि इस आन्दोलन से मुझे दूर करना चाहते हैं। इसके बाद 26 लोगों की लिस्ट 6 पर आ पहुंची और सरकार से मिलने से पहले गुर्जर नेताओं की आपसी फूट रेल की पटरियों पर ही दिखाई दे गई।
सरकार से गुर्जर नेताओं की वार्ता फेल हुई या गुर्जरों के नये नेताओं द्वारा पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार फेल की गई इस बात को सिर्फ कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ही भलीभांती जानते हैं। कर्नल बैंसला को गुर्जर आन्दोलन की संवैधानिक स्थिती, सरकार की मजबूरी और गुर्जरों की महापंचायत से सरकार पर न्यायालय में अच्छी पैरवी का दबाव बनाने की योजना को नये नेता फेल करने में कामयाब होकर आन्दोलन को कर्नल बैंसला के हाथों से छीनने के प्रयास में सफल होते दिखाई दे रहे हैं।
गुर्जर आरक्षण आन्दोलन में 2008 से कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के साथ दिखाई देने वाले बहुत से चेहरे इस बार नहीं है बल्कि 2015 के आन्दोलन में सभी गुर्जर नेता नये और अधिक उग्र दिखाई दे रहे हैं। 2008 की टीम पर कर्नल बैंसला की एक तरफा पकड़ थी। सरकार को कैसे मजबूर करना, गुर्जरों को कम से कम नुकसान के साथ आरक्षण का लाभ कैसे दिलवाना। यह बात आज भी कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला में मौजूद है, लेकिन शनिवार को कर्नल बैंसला बयाना की सरकारी वार्ता में तथा रेल पटरियों पर अकेले-तन्हा एवं बेसहारा दिखाई दिये।

गहलोत आन्दोलन के खिलाफ
गुर्जर आरक्षण आन्दोलन में रेल पटरियों पर बैठे आन्दोलनकारियों को भड़काने की जगह विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बहुत ही प्रसंसनीय बयान देकर आन्दोलन खत्म करने की सलाह दी है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुर्जर आरक्षण आन्दोलन को गलत बताते हुए सरकार से गुर्जरों को समझाईश का सुझाव दिया है। गहलोत ने आरक्षण के मामले को न्यायालय में विचाराधीन होने से गुर्जरों को आन्दोलन नहीं करने, और सरकार को इस मामले को शिघ्र निपटाने के प्रयासों की सलाह भी दी है।

ओबीसी गुर्जरों के विरोध में...
ओबीसी एवं जाट नेता राजाराम मील ने गुर्जर आरक्षण आन्दोलन को कुछ नेताओं का निजी स्वार्थ बताते हुए ओबीसी के आरक्षण में से चार प्रतिशत गुर्जरों की मांग को गलत बताते हुए चेतावनी दी है कि राजस्थान की सभी ओबीसी जातियों, जाटों एवं मेघवालों द्वारा भी विरोध किया जायेगा।
जाट नेता मील ने कहा कि गुर्जर आरक्षण मामला न्यायालय के विचाराधीन है ऐसे में रेल पटरियों पर बैठकर न्यायालय के फैसले को अपने हित में करने का दबाव बनाना न्यायालय की अवमानना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Sunday, May 17, 2015


39वीं जोधपुर रेंज पुलिस खेलकूद प्रतियोगिता 
पुलिस में 'फिट' है तो आप 'हिट' है: आईजी दत्त

अब्दुल सत्तार सिलावट                                                                           
पुलिस को देखते ही आपके दिलों में एक भयपूर्ण नफरत पैदा होती है। आपको बचपन से ही सिखाया गया कि पुलिस से बचकर रहना। पुलिस कभी दोस्त नहीं होती, वगैराह-वगैराह। इसलिए हम पुलिस को सम्मान से दूर रखते हैं भले ही यह भी सच्चाई है कि इन पुलिस वालों के खौफ से हमारी जवान बेटियां अकेली स्कूल-कॉलेज जाकर सुरक्षित घर लौटती हैं। हमारे व्यापारी लाखों रूपया नकद अखबारों में बंडल बांधकर या प्लास्टिक के थेलों में डालकर बैंक से ले आते हैं या जमा करवाने चले जाते हंै। इससे भी आगे बढ़कर आप और हम चैन की नींद जो सोते हैं उसमें भी पुलिस के जागने का बलिदान है। पुलिस वालों के जीवन की 'आहुति' से ही हम सम्मान से जी रहे हैं।
पुलिस की पृष्ठभूमि और सामाजिक सोच से अलग हटकर हम आज शुभारम्भ हुए 39वें जोधपुर रेंज पुलिस खेलकूद प्रतियोगिता का दृश्य देखते हैं जिसमें जोधपुर की चार टीम के साथ जालोर, सिरोही, बाड़मेर,जैसलमेर, पाली सहित कुल नौ टीमें, 540 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं जिनमें महिला पुलिस की खिलाड़ी भी शामिल है।
पुलिस जवानों को छोटी-छोटी गलतियों पर डांटने-फटकारने वाले बड़े पुलिस अधिकारियों का दूसरा रूप भी आज के खेल समारोह के उद्घाटन में देखने को मिला जब एक परिवार के सदस्यों की तरह बड़े अधिकारी से नये रंगरूट जवान तक अनुशासनबद्ध, संवेदनशील हृदय का परिचय दे रहे थे। बड़े अधिकारी खेलों से स्वास्थ्य, परिवार और जीवनशैली बदलने की सीख दे रहे थे। पुलिस थानों के घुटन और तनावपूर्ण वातावरण से अलग पाली पुलिस लाईन के खेल मैदान पर आज के रेंज खेलकूद प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह में उच्च अधिकारी अपने जवानों पर स्नेह, सीख एवं आत्मीयता का प्रभाव छोडऩे के साथ साहित्यक प्रेम के परिचय में कविता की पंक्तियों का उल्लेख करते देखे गये।
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि जोधपुर रेंज के पुलिस महानिरिक्षक सुनिल दत्त ने खिलाडियों के परेड के बाद कहा कि खेल के मैदान में हमें धर्म-जाति-समूह-क्षेत्रियता के बंधन से मुक्त होकर एक अनुशासनबद्ध खिलाड़ी की तरह खेलकर परिचय देना चाहिये कि पुलिस के जवान अनुशासित जीवन जीने वाले तथा समाज की रक्षा के प्रहरी है।
आईजी दत्त ने कहा कि पुलिस की नौकरी की समय सीमा तय नही है एक जवान को दो-चार घंटों से लेकर कई बार चौबीस घंटे भी काम करना पड़ता है ऐसे हालात में खेलकूद को नियमित दिनचर्या में लिया जाये तो तनाव कम ही नहीं खत्म भी हो सकता है। आपने कहा कि खेलों से आप फिट रहेंगे तो परिवार भी फिट रहेगा साथ ही हमारा पुलिस महकमा भी फिट रहेगा।
संवेदनशील हृदय का परिचय देते हुए आईजी सुनिल दत्त ने अपने बचपन के खेल संस्मरण भी सुनाये और बचपन के खेलों को बड़े होकर खेलने वालों से तुलना करते हुए कहा कि आजकल समाज में बड़े होकर लोग एक दूसरों को 'पटखनी' देने का खेल खेलते हैं जिससे हमें दूर रहकर समाज को सुरक्षा एवं अपने कर्तव्यों के प्रति सजगता का परिचय देना चाहिये।
खेलकूद प्रतियोगिता के आयोजक एवं पाली पुलिस अधीक्षक अनिल कुमार टांक ने कहा कि सात जिलों की सीमाओं से जुड़े पाली जिले को 39वें खेलकूद प्रतियोगिता के आयोजन का सौभाग्य मिला है। प्रतिभागी जवान खिलाड़ी अपनी टीम भावना से खेलकर अनुशासन का परिचय देवें। आपने सम्बोधन में कवि की पंक्तियां कही 'जीतकर जो रूक गया उसे जीता नहीं कहूंगा, हार कर जो चल पड़ा उसे हारा नहीं कहूंगा।'
समारोह के अध्यक्ष एवं पाली विधायक ज्ञानचन्द पारख ने समारोह में देर से आने को राजनेताओं का भ्रम बताते हुए कहाकि राजनैतिक कार्यक्रम देर से शुरू होते हंै जबकि आज के पुलिस समारोह ने मुझे समय पाबन्दी एवं पुलिस के अनुशासन की सीख दी है। नगर परिषद चेयरमेन महेन्द्र बोहरा ने भी खिलाडिय़ों को शुभकामनाएं एवं टीम स्पीड से खेलने का संदेश दिया।
आज के समारोह में जोधपुर रेंज के विभिन्न जिलों के पुलिस अधिकारियों ने भी अपनी टीमों के साथ भाग लिया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोढ़ा बाल निकेतन के छात्र-छात्राओं द्वारा देशभक्ति, मार्शल आर्ट कोच आसिफ खान ने सेल्फ डिफेन्स एवं गैर नृत्य का आयोजन भी दर्शकों एवं खिलाडियों को समारोह में बांधे रखने में सहयोगी रहा।

बेस्ट टीम को आईजी पुरस्कार
जोधपुर रेंज खेलकूद प्रतियोगिता की 9 टीमों में सर्वश्रेष्ठ खेल प्रदर्शन करने वाली टीम को आईजी सुनिल दत्त अलग से सम्मानित करेंगे। खेल शुभारम्भ में खिलाडियों को अच्छे प्रदर्शन का गुरूमंत्र देते हुए आईजी दत्त ने प्रोत्साहन के लिए 'बेस्ट टीम' को आईजी जोधपुर रेंज की ओर से विशेष पुरूस्कार देने की घोषणा कर उत्साहित किया।
58 को सेवा चिन्ह अलंकरण
जोधपुर पुलिस रेंज के उत्कृष्ट सेवा कार्य करने वाले 58 पुलिस अधिकारियों एवं जवानों को आईजी सुनिल दत्त ने खेलकूद उद्घाटन समारोह में पुलिस सेवा चिन्ह अलकंरण से सम्मानित किया। खेल के मैदान पर गौरान्वित अधिकारियों के सीने पर स्वयं आईजी दत्त ने सेवा चिन्ह लगाकर 58 पुलिस जवानों को अच्छी सेवा के लिए प्रोत्साहित किया।
...याद करो कुर्बानी
खेलों के शुभारम्भ पर लोढ़ा बाल निकेतन छात्र-छात्राओं ने युद्ध के समय सीमा पर पुलिस जवानों के कौशल एवं साहसिक युद्ध का सजीव चित्रण मय हिमालय की पहाडिय़ों के किया। साथ ही बालिकाओं द्वारा शहीदों को श्रद्धांजलि का अमरगीत 'ए मेरे वतन के लोगों' को पहली बार डांस पर पेशकर मार्मिक एवं भावुक वातावरण पैदा कर दिया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Sunday, May 3, 2015

जहाँ बेदर्द हो हाकिम...


'जन सुनवाई : मंत्री दरबार : जनता दरबार

अब्दुल सत्तार सिलावट
जन सुनवाई। मंत्रियों के बंगलों पर। भाजपा प्रदेश कार्यालय में 'मंत्री दरबार' लगेंगे। मुख्यमंत्री निवास पर तो बारहो महिनों जन सुनवाई चलती है। कांग्रेस के अशोक गहलोत के कार्यकाल में भी प्रदेश भर से रात भर जागकर, सैकड़ों रूपये किराया लगाकर और घर से चार रोटी कपड़े में बांधकर जनसुनवाई में लोग आते थे। मुख्यमंत्री गहलोत जनता दरबार में उनके हाथों से प्रार्थना पत्र लेकर पीछे खड़े स्टाफ को देते थे और गांव से आया गरीब संतुष्ट होकर चला जाता था कि अब मेरा काम हो गया... बिल्कुल वैसा ही दरबार, जन सुनवाई, गांवों से आने वालों की भीड़ मौजूदा मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के दरबार में भी लगती है। मुख्यमंत्री के सामने होते हैं गांवों से आये फरियादी, हाथों में दो-चार पेज पर हाथ से या टाईप की हुई 'दर्द भरी दास्तान' और मुख्यमंत्री उनके हाथों से लेकर पीछे खड़े स्टाफ को दे देती है। गरीब संतुष्ट, गांव में जाकर कार्यवाही का इन्तजार...।
वसुन्धरा जी, अशोक गहलोत ने भी जनता दरबार तो लगाये, लेकिन जनता की फरियाद, दु:ख दर्द की शिकायतों पर कार्यवाही नहीं होती थी इसलिए राजस्थान की जनता ने उन्हें .... जहाँ बेदर्द हो हाकिम, वहाँ फरियाद क्या करना .... और सत्ता से बेदखल कर दिया। आपकी भाजपा सरकार भी पिछले सवा साल में अशोक गहलोत के 'पद चिन्हों' पर या उनकी 'वर्क स्टाइल' का अनुसरण कर रही है। जनता की फरियाद आप, आपके मंत्री और पार्टी पदाधिकारी ले लेते हैं, लेकिन उन पर कार्यवाही नहीं होती है। ऐसी बातें आम जनता के साथ आपकी पार्टी भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता और जिन्हें मंत्री नहीं बनाये वे विधायक तो खुले आम जन सुनवाई को 'नाटक' कहकर मजाक उड़ाते हैं।
महारानी साहिबा, आप कुशल प्रशासक हैं, आपकी 'रगों' में शासक का खून दौड़ रहा है आपके चेहरे के तेजस्व से पिछले शासन में अधिकारियों की दिल की धड़कने बढ़ जाती थी, लेकिन इस बार उन्हीं अधिकारियों ने आपको चारों ओर से घेर कर इतना विश्वास में ले लिया है कि आप अपने शुभचिन्तकों, विश्वसनीय राजनेताओं और अपने पार्टी पदाधिकारियों के साथ आम जनता की दु:ख, पीड़ा और दर्द की चीख से बेखबर और दूर होती जा रही हैं। आप राजस्थान के विकास में दिन-रात दौड़ रही हैं, लेकिन इस दौड़ में आपके 'अपने' पीछे छूट रहे हैं और खुदगर्ज लोगों की भीड़ आपको चारों ओर से घेर कर आपको जनता से ही दूर कर रही है।
मुख्यमंत्री जी, आप जनता दरबार लगवायें, जन सुनवाई भी करवायें, पार्टी मुख्यालय में मंत्रियों को रोजाना बैठा दीजिये। साथ ही आप हर सप्ताह मंत्रिमण्डल की बैठक भी जरूर लेवें, लेकिन इन सब से पहले पिछले सवा साल में जनता द्वारा आपको राजस्थान के दौरों में दी गई फरियादें, अपने दुखों की दास्तानों के 'चि_ों' और आपके आवास पर आने वालों की फरियादों पर कितने लोगों को राहत मिली है। कितनी शिकायतों पर दोषी कर्मचारियों, अधिकारियों को सजा मिली है। फरियादी को राहत मिलने के बाद आपके पार्टी पदाधिकारियों ने अअसकी सुध ली है या नहीं। एक बार आप नई सरकार गठन के बाद वाले सवा साल में जन सुनवाई पर हुई कार्यवाही की समीक्षा करवाकर देख लेवें आपको 'सच्चाई' का पता चल जायेगा। राजस्थान में सिर्फ आपकी सरकार ही नहीं पिछली कांग्रेस सरकार में भी जनसुनवाई मात्र औपचारिकता बनकर रह गई थी।
वसुन्धरा जी, आपकी पहली सरकार में आप जनता के दिलों में कुशल प्रशासक के रूप में छा गई थीं और यही कारण था कि सचिवालय से लेकर पूरे जयपुर और राजस्थान में बड़े शहरों में सफाई, बिजली, पेयजल, उद्यानों में ताजा फूल भी खिलते थे, लेकिन इस बार की सरकार के पहले छ: माह के बाद से ही मुख्यमंत्री कार्यालय के बाहर कमल कुण्ड से लेकर स्टेच्यू सर्कल, जनपथ और मुख्य चौराहों पर ताजा फूल तो दूर की बात तीन-तीन दिन तक टूटे पत्ते भी नहीं हटाये जा रहे हैं। जनता में आपकी छवि अधिकारियों द्वारा चलाई गई पिछली कांग्रेस सरकार जैसी बनती जा रही है।
मुख्यमंत्री जी, आप पिछले तीन माह से रिसर्जेंट राजस्थान को ऐतिहासिक एवं विश्व स्तरीय बनाने में लगी हैं और यह बात सत्य है कि आप जिस 'विजन' से यह आयोजन करने जा रही हैं उससे राजस्थान देश ही नहीं विश्व स्तर पर एक नई पहचान बना डालेगा। राजस्थान में सिर्फ औद्योगिक विकास ही नहीं बल्कि इसके साथ कृषि, शैक्षणिक, चिकित्सा क्षेत्रों में भी विकास होगा और राजस्थान की बेरोजगारी खत्म हो जायेगी।
मुख्यमंत्री जी, आपके साथ प्रदेश को चलाने वाले सभी प्रमुख एवं उच्च अधिकारी रिसर्जेंट राजस्थान की तैयारियों में व्यस्त होने के कारण बाकी अधिकारी भी रिसर्जेंट राजस्थान की तैयारियों की चर्चाओं में लगे रहते हैं और पूरे राजस्थान की सरकारी कार्यों की स्पीड को ब्रेक लग चुका है जो सम्भवत: रिसर्जेंट राजस्थान समारोह की समाप्ती के बाद ही गति पकड़ पायेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)