Thursday, July 23, 2015

मीडिया: आयकर चोरों का साथ छोड़ें

राजस्थान की पत्रकारिता में स्वयं को भीष्म पितामह के वंशज समझने वालों के अख़बार में आज (23 जुलाई 2015) आयकर छापे के समाचार को इसलिए नहीं छापा गया कि देश के राजस्व भण्डार पर डाका डाल रहे आयकर चोर समाचार पत्र से नाराज़ होकर वित्तीय लाभ देना बंद नहीं कर दें। जबकि इससे बड़े राजस्थान ही नहीं देश के नम्बर एक अख़बार ने प्रथम पृष्ठ पर आयकर चोरों की फर्म के नाम सहित समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया है।

अब्दुल सत्तार सिलावट          
 
 लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ प्रेस-मीडिया-समाचार पत्र से जुड़े पत्रकार से आज के समाज को अफसरों और राजनेताओं से अधिक उम्मीदें, विश्वास हैं, इसलिए नलों में गंदा पानी आने पर, बिजली कटौती, अस्पताल में अव्यवस्था या गली मोहल्ले की गन्दगी पर अफसरों और नेताओं से पहले पत्रकार को आवाज़ देते हैं। आज देश की संसद, विधानसभाएं और कई बार कहा जाता है कि न्यायालयों में चल रहे जनहित के मुकदमों पर भी मीडिया की खबरों का प्रभाव या मार्ग दर्शन दिखाई देता है।
मीडिया भी बहुत जागरुक है, आपने समाचार पत्रों और टीवी चैनलों की ख़बरों में देखा होगा कि चार बोतल शराब या पुरानी दस हजार कीमत वाली मोटर साइकिल की चोरी में पकड़े गये चोर के दोनों तरफ कांस्टेबल-थानेदार खड़े होकर फोटो खिंचवाते हैं और वह फोटो दूसरे दिन अख़बारों में दिखाई देता है। ऐसा ही चैन स्नेचींग में पकड़े जाने पर और इससे भी आगे बढ़कर गली मोहल्ले की नाबालिग लड़की किसी गली छाप हीरो के बहकावे में आकर कहीं चली जाये तो उसके बाप के नाम से ख़बर को छाप देते हैं, ऐसी ही बलात्कार के झूठे आरोप की भी ख़बर मिल जाये तो हम बलात्कार के समय चश्मदीद गवाह बनकर ख़बर को 'रोमांटिक' बनाकर छाप देते हैं, लेकिन सैकड़ों करोड़ की आयकर चोरी करने वाले ज्वैलर्स और शेयर ब्रोकर की ख़बर के साथ उसका या उसके प्रतिष्ठान का फोटो तो दूर उसका नाम तक बड़े से बड़ा अख़बार और लोकप्रियता की बुलन्दी छू रहे टीवी न्यूज़ चैनल भी नहीं दिखाते हैं। ऐसी ही पत्रकारिता कांग्रेस के पूर्व विधायक या नेता के होटल में सेक्स रैकेट में पकड़ी गई लड़की के हाथों और पांवों को तो टीवी न्यूज़ में 'क्लोज अप' करके नेल-पॉलिश की चमक के साथ दिखाया जाता है, लेकिन होटल मालिक नेता का नाम उजागर नहीं किया जाता है।
मीडिया की इस दोहरी भूमिका के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? क्या मीडिया का व्यवहार भी जेडीए या निगम-पालिका के अतिक्रमण हटाओ अभियान जैसा नहीं है? जो गरीब की झौपड़ी को बिना नोटिस भी तोड़ देते हैं जबकि पूंजीपतियों की गगनचुम्बी अवैध ईमारतों को अख़बारों और टीवी चैनलों की ख़बरों में सात-सात दिन तक चलाने के बाद भी अतिक्रमण हटाने वाले दस्तों से दूर रखकर न्यायालयों से 'स्थगन आदेश' लाने का भरपूर समय और समर्थन देते हैं।

....हमारी पत्रकारिता!
ऊपर के समाचार में एक पटवारी 1100/-रू. की रिश्वत में पकड़ा गया। उसकी पोस्टिंग, रिश्वत लेने का स्थान और मूल निवास मय जिले के नाम के छापा गया है। इसी समाचार के नीचे सैक्स रैकेट के समाचार में जोधपुर के पूर्व विधायक के बेटे की होटल का या मालिक का नाम तक नहीं है। पाठक आज़ादी के बाद से आज तक के सभी पूर्व विधायकों के बेटों के नामों का अनुमान लगाते रहे। -सम्पादक

देश के राजस्व आयकर, एक्साइज एवं कर चोरों का अपराध देश द्रोह की श्रेणी में आता है। ऐसे अपराधियों को जनता के सामने नंगा करने का दायित्व सरकार के साथ मीडिया का भी है। सट्टेबाजों, आयकर चोरों, निर्यात के कंटेनरों में गलत जानकारी देकर एक्साइज चोरी करने वाले मीडिया या अख़बार वालों के कितने हितैषी हो सकते हैं। छोटे अख़बारों और टीवी चैनलों को ऐसे लोग मुँह भी नहीं लगाते हैं जबकि बड़े अख़बारों और चैनलों को साल भर में आयकर चोरी का एक प्रतिशत दस बीस लाख या एक करोड़ का विज्ञापन दे देते होंगे। यह विज्ञापन भी आयकर चोरों का बड़े अख़बारों पर 'अहसान' नहीं है बल्कि काम के बदले अनाज या मेहनत का भुगतान ही तो है। इसके बदले हम अपनी पत्रकारिता की कलम का 'सर नीचा' क्यों करें!
इन टैक्स चोरों से अधिक विज्ञापन चुनावों के समय और सरकार बनने के बाद अपनी सरकार की प्रगति के रुप में राजनैतिक दल अख़बारों और टीवी चैनलों को देते हैं फिर भी हम उनके ख़िलाफ जब भी मौका मिलता है चाहे ललित गेट हो या कारपेट मुकदमा। खूब बढ़ा चढ़ाकर समाचार छापते हैं। विज्ञापन पोषण के बदले में 'कृतज्ञता' आयकर चोरों से अधिक राजनैतिक पार्टीयों के प्रति होनी चाहिये लेकिन होता है उलट। हम सरकार का एक पृष्ठ पर विज्ञापन छापते हैं और उसी के सामने वाले पृष्ठ पर उद्घाटन में आये नेता को दस बीस लोगों के विरोध स्वरूप काले झंडे दिखा दिये, तो एक पेज उद्घाटन के विज्ञापन की खबर एक कॉलम दस सेंटीमीटर में छुप जायेगी और काले झंडे वाली ख़बर फोटो सहित तीन या चार कॉलम में छाप कर हम 'विज्ञापन का अहसान' चुका देते हैं। ऐसे समय में मीडिया या हमारा तर्क होता है स्वतंत्र पत्रकारिता का धर्म निभाते हैंं, लेकिन आयकर चोरों के नाम, प्रतिष्ठान का नाम छुपाकर क्या हम उन चोरों के 'सहभागी' का धर्म नहीं निभा रहे हैं।
क्षमा करें! थोड़े लिखे का 'थोड़ा' ही समझें और अगर दिल में 'राम' बैठा हो तो आत्मचिंतन, आत्म मंथन, ठंडे दिल से विचार करें और पत्रकारिता को कॉरपोरेट हाऊस के बड़े घरों के अख़बार भी अपने पूर्वजों को याद कर पत्रकारिता की सही राह पर लड़खड़ाते कदमों को जमा कर चलने का प्रयास करें। बड़े अख़बार छोटे अख़बारों के 'आदर्श' हैं। प्रदेश के एक बड़े अख़बार का 'नो-नेगेटिव न्यूज़' का निर्णय हमें गौरान्वित करता है ऐसा ही निर्णय आयकर चोरों या देश की राजस्व चोरी करने वालों के ख़िलाफ भी लेकर हम छोटे अख़बारों, पत्रकारों का मार्गदर्शन करें।

Friday, July 17, 2015

महामहिम: संवैधानिक पद का 'भगवा करण'


राजस्थान राजभवन रोज़ा इफ़्तार से दूर
 
अब्दुल सत्तार सिलावट
राजस्थान का राजभवन इस साल मुसलमानों को रोज़ा इफ़्तार पार्टी नहीं देने से पीछे का कारण यह रहा कि नये राज्यपाल कल्याण सिंह अपनी हिन्दूवादी छवि को 'बरकरार' रखना चाहते हैं, ऐसी बातें मुस्लिम नेताओं और संगठनों में चर्चा का विषय बनी हुई है, जबकि आज़ादी के बाद से हिंदुओं की शुभचिन्तक, रक्षक, मुस्लिम विरोध का 'दक्ष' झेल रही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इसी रमज़ान में अपनी परम्पराओं को 'ताक' पर रखकर देश की राजधानी दिल्ली में भव्य रोज़ा इफ़्तार कार्यक्रम करके भारत ही नहीं पड़ौसी देशों को भी संदेश दिया कि अब भारत में धर्म की राजनीति के समीकरण बदल चुके हैं।
रमज़ान 2013 में तत्कालीन राज्यपाल मागे्रट आल्वा ने उत्तराखण्ड में हुई भारी तबाही के शोक में रोज़ा इफ़्तार पार्टी नहीं देकर देवभूमि की तबाही के प्रति संवेदना व्यक्त की थी, जिसका सभी मुस्लिम संगठनों ने भी समर्थन किया था, लेकिन इस बार देश में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी 'आड' में राजस्थान के राज्यपाल राजस्थान के दाढ़ी वाले-टोपी वाले मुसलमानों को इबादत के माह रमज़ान में रोज़ा इफ़्तारी के लिए राजभवन के प्रांगण में नहीं बुलाना चाहते हैं।
राजस्थान के महामहिम को मालूम होना चाहिये कि भारत के मुसलमानों के रमज़ान की इबादत किसी राजनेता के रोज़ा इफ़्तार पार्टीयों में जाने से ही अल्लाह कुबूल नहीं करता है बल्कि मुसलमान तो स्वयं अपने 'मन' के कदम बढ़ाता है। महामहिम आप अपने मुस्लिम नेताओं से एक बात मालूम कर लें, कि जो भी मुसलमान रोज़ा इफ़्तार की राजनैतिक पार्टीयों में आता है वह अपने घर से 'दो खजूर' अख़बार के टुकड़े में बांधकर साथ लाता है और जब इफ़्तार का वक्त होता तब आपके ज्यूस, खजूर और मेहमान नवाज़ी की रश्मों में रखे बादाम-काजू से पहले अपनी जेब से हक-हलाल की कमाई के दो खजूर निकालकर अल्लाह का शुक्र अदा कर अपना रोज़ा इफ़्तार करता है।
राजभवन के विशाल लॉन में फाईव स्टार होटल से आये खाने पर राजनैतिक मुसलमान और सरकारी कर्मचारी टूट पड़ते हैं। मोती डूंगरी, मुसाफिर खाना के पास और रामगंज़, जालूपुरा से आने वाला रोज़ेदार मुसलमान तो सिर्फ राजभवन की खूबसूरती, बैण्डवादन पर राष्ट्रगान, और मौका मिल जाये तो राजभवन में इफ़्तार पार्टी में आये किसी मंत्री से हाथ मिलाकर वापस लौटने में भी अपनी खुश किस्मती समझ लेता है। राजभवन के रोज़ा इफ़्तार से अधिक आम मुसलमान मुख्यमंत्री के रोज़ा इफ़्तार में जाना पसन्द करता है, भले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हों या वसुन्धरा राजे। राजस्थान का मुसलमान वसुन्धरा राजे को आज भी 'अपनी' मुख्यमंत्री मानता है और यह बात सत्य भी है कि मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की छवि 'कट्टरवादी' नहीं है।
आज़ादी के बाद से राष्ट्रपति भवन, प्रदेशों के राज्यपाल देश की कौमी एकता की छवि को बनाये रखने के लिए रोज़ा इफ़्तार कार्यक्रमों का आयोजन करते आये हैं जबकि राजभवन या राष्ट्रपति जी को मुस्लिमों के वोट नहीं चाहिये होते हैं। राजस्थान के राज्यपाल को मुसलमानों को रोज़ा इफ़्तार करवाना 'फिज़ूल खर्ची' लगता हो तो भविष्य में 15 अगस्त और 26 जनवरी के आयोजन भी बंद करवा देने चाहिये।
आज़ादी के 67 साल बाद भी शिक्षा देने वाले अध्यापक स्कूल पर झंडा लहराते समय कौन-सा रंग ऊपर रखना हैं भूल जाते हैं, ऐसे ही सूर्यासत के बाद भी झंडे लहराते हुए फोटो दूसरे दिन अख़बारों में छपते रहते हैं। आज़ादी के जश्न में भी स्कूली बच्चों और सरकारी कर्मचारियों के अलावा टेन्ट, माइक, लाईट वालों की ही भीड़ ज्य़ादा होती है। आम आदमी तो घर बैठे टीवी पर ही आज़ादी का जश्न मना लेता है। अब रही बात संविधान दिवस 26 जनवरी की। अब तो आप भी जान गये होंगे कि देश की सभी राजनैतिक पार्टीयां 2जी, 4जी से लेकर सुषमा, ललित मोदी तक की श्रंखला में देश के संविधान की कैसे धज्जियां उड़ा रहे हैं।
राजस्थान के महामहिम आपका रोज़ा इफ़्तार रद्द करने का कार्यक्रम किसी भी परिस्थिती में रहा हो, इससे राजस्थान के मुसलमानों की रमज़ान की इबादत, रोज़े की फ़ज़ीलत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। मुसलमानों की इबादत अल्लाह मंज़ूर करता है, लेकिन बाबरी मस्जि़द शहीद होने से पहले जब आप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते कोर्ट में बाबरी मस्जि़द बचाने का जो हलफनामा दिया था, आज उस हलफनामें और आपके दिल में मुसलमानों के प्रति कैसा सम्मान तब था और आज है उसकी झलक राजस्थान ही नहीं देश भर के मुसलमानों को 'रोज़ा इफ़्तार' रद्द करने के बाद दिखाई दे रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Thursday, July 16, 2015

मोदी तो बच्चों का भविष्य छीन रहे हैं: राहुल


ए.एस. सिलावट

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान में पदयात्रा को मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार के शांत अंगारों को फिर हवा देकर केन्द्र की मोदी सरकार से जोड़ते हुए शुरु की तथा कहाकि राजस्थान में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। राजस्थान की मुख्यमंत्री और ललित मोदी से जुड़े भ्रष्टाचार को राहुल गांधी ने मुद्दा बनाते हुए राजस्थान भर से आये कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को आमजन की तकलीफों से जुड़कर मदद करने का आव्हान भी किया। प्रदेश भर से आये कार्यकर्ताओं ने हनुमानगढ़ के खोथांवाली गांव में माईक पर सम्बोधित कर राहुल जी तक अपने क्षेत्र की समस्याएं एवं भाजपा की सरकार द्वारा बंद की गई कांग्रेसी सरकार की योजनाओं की जानकारी भी दी।
उदयपुर के आदिवासी क्षेत्र के कांग्रेसियों द्वारा राहुल गांधी को बताया गया कि कांग्रेस सरकार द्वारा आदिवासियों के विकास के लिए जो योजनाएं शुरु की गई थी, उन्हें भारतीय जनता पार्टी की सरकार आते ही बंद कर दिया गया है। इस पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेसियों को आव्हान करते हुए कहा कि हम आदिवासियों के विकास के लिए उनके साथ हैं और आपकी आवाज़ सरकार तक पहुँचाकर विकास को रोकने नहीं देंगे।
राहुल गांधी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार आम आदमी की आवाज़ को दबाने में लगी है और कांग्रेस किसानों, गरीबों, आदिवासियों की पार्टी है तथा हम समाज के दलित, मज़दूर और पिछड़ों की आवाज़ को दबने नहीं देंगे। कांग्रेस इन सभी वर्गों के हितों के लिए मौज़ूदा भाजपा और एनडीए सरकार से संघर्ष करती रहेगी।
भूमि विधेयक बिल पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार को चुनौती देते हुए कहा कि कांग्रेस किसानों की एक इंच ज़मीन भी पूंजीपतियों की इस सरकार को नहीं लेने देगी। राजस्थान नहर के उपजाऊ क्षेत्र हनुमानगढ़ के किसानों को सम्बोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि मोदी जी ने किसानों को विकास का झूठा सपना दिखाकर आज उनकी उपजाऊ भूमि को जबरन पूंजीपतियों को देने का विधेयक पास करवाना चाहती है, लेकिन कांग्रेस किसानों की रक्षा के लिए खड़ी है और हम किसान के भविष्य के साथ धोखा नहीं होने देंगे।

राहुल जी बोले मोदी स्टाइल में...
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राजस्थान के हनुमानगढ़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाषण शैली की 'कॉपी' करते हुए सभा में उपस्थित किसानों से पूछा कि 'भाईयों मोदी जी ने क्या कहा था?... याद हैं ना!... मोदी जी ने कहा था, ना खाऊंगा-ना ही खाने दूंगा, लेकिन यह तो नहीं कहा था कि भ्रष्टाचार पर शांत रहूंगा, कुछ भी नहीं बोलूंगा।'
राहुल गांधी की 49 दिन की गुप्त यात्रा के बाद भाषण शैली, बांहेें चढ़ाना बंद कर सभा की भीड़ को अपने शब्दों में बांधे रखने की कला का एक नमूना राजस्थान में आज की पदयात्रा के पहले मोदी स्टाइल की कॉपी के रुप में दिखाई दिया।

...कांग्रेसियों की गुटबाजी, सदाबहार!
राहुल गांधी के दौर को भाजपा नेताओं ने राजस्थान में कांग्रेस की आपसी गुटबाजी के सामने नगण्य, प्रभावहीन कहकर सभी आरोपों को नकारते हुए कहा कि राहुल गांधी पहले अपने घर की धड़ेबंदी को सम्भालें।
हनुमानगढ़ में राहुल गांधी को अपने क्षेत्र की समस्याएं सुनाते समय पश्चिमी राजस्थान के कांग्रेसियों ने माईक पर 'अशोक गहलोत.....' का नारा लगाया, लेकिन भीड़ के एक कौने से ही 'जिन्दाबाद' का स्वर सुनाई दिया। ऐसी ही हालत मेवाड़, शेखावाटी, धुंधाड़ और बीकानेर से आये कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की थी।
राजस्थान में कांग्रेसी सरकार जाने के बाद गहलोत और सी.पी. जोशी गुट से आगे बढ़कर आधा दर्जन गुट कांगे्रस में सक्रिय हो गये हैं। गिरीजा व्यास, बी.डी. कल्ला, चन्द्रभान एवं प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट तो पहले से संगठन को सक्रिय करने से अधिक समय एक दूसरे की 'कार-सेवा' में दे रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Monday, July 6, 2015

मोदी जी, देश की सुरक्षा के लिए इनकी 'कलम' को रोकें...


सेवानिवृति के बाद खुफिया अधिकारियों की किताबों के रहस्योद्घाटन

अब्दुल सत्तार सिलावट                                                            
कंधार विमान अपहरण काण्ड के 16 साल बाद खुफिया विभाग के सेवानिवृत अधिकारी द्वारा उस समय के नेताओं की मजबूरियों को निर्णय की कमजोरी, नेताओं की अक्षमता कहकर आज विवाद ही पैदा नहीं किया जा रहा बल्कि उनकी छवि को धूमिल किया जा रहा है। 1999 में एयर इंडिया का विमान आईसी 814 के अपहरण के बाद के निर्णयों में भारत के देशभक्त नेता, राजनयिक और खुफिया विभाग पूरा ही शामिल था, लेकिन आज सेवानिवृत अधिकारी अपनी किताब के रहस्योद्घाटन से उस वक्त के नेताओं को अक्षम, दबाव में निर्णय और देश भक्ति पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।
आपातकाल के बाद से ऐसा दौर चला कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के निजी सचिव ने उनके जीवन के रंगीलेपन को एक साध्वी से जोड़कर अपनी किताब बेची। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी सत्ता में नहीं रहते हुए लंदन और मास्को यात्रा में सोवियत कम्यूनिस्ट पार्टी के जनरल सैके्रट्री लियोनिद ब्रेझनेव के एयरपोर्ट पर स्वागत को रहस्यपूर्ण बताया। आईबी के तत्कालीन जोइन्ट डायरेक्टर ने राजीव गांधी के प्रधानमंत्री पद को उद्योगपति धीरुभाई अम्बानी से जोड़ा। उमा भारती-गोविन्दाचार्य के पाक रिश्तों को 'शक' में बदला। मेनका गांधी के फोन टेप से सनसनी पैदा की गई।
मिशन 'रॉ' के भूतपूर्व अधिकारी द्वारा आपातकाल से जुड़ी, अमेरिका से जुड़े कई महत्वपूर्ण गुप्त दस्तावेजों की जानकारी, बड़े देशों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा पर किये गये गुप्त समझौते पर सवाल खड़े कर सार्वजनिक किये गये। इस अधिकारी ने तो 'रॉ' के तत्कालीन चीफ एस.के. त्रिपाठी को काठमांडू में दाऊद की पार्टी में मेहमान बनकर जाना भी रहस्योद्घाटन में शामिल कर दिया।
देश की सुरक्षा में खुफिया एजेंसीयों, भारत सरकार के सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के निजी सहायकों, विदेशों में राजनयिकों की सेवानिवृति के बाद पांच-दस करोड़ रूपये कमाने के लिए किताबें लिखकर मीडिया में प्रचार पाने, देश में सनसनी फैलाने और जाने अंजाने में 20-30 साल पहले के देश भक्त नेताओं की छवि धूमिल करने का अभियान चलाकर अपनी काल्पनिक किताबों को बेचने की परम्परा बन गई है।
जो अफसर अपने सेवा काल में देश के बड़े नेताओं के सामने 'बाबू' की तरह हाथ में शॉर्ट हैण्ड लिखने की डायरी लेकर सर झुकाये 'यस सर'-'यस सर' का स्वर अलापते नहीं थकते थे, आज वे ही रिटायर्ड अफसर अपने समय के देश भक्त नेताओं के देश हित में समय की मांग के अनुसार लिये गये निर्णयों को गलत, जनहित के खिलाफ बताकर देश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं, साथ ही उस समय के नेताओं के विरोधी राजनैतिक दलों को मौजूदा समय में चुनावी दुष्प्रचार की सामग्री उपलब्ध करवा रहे हैं और इसके पीछे इनका उद्देश्य सिर्फ अपनी हजार-पन्द्रह सौ की किताब को बेचकर दो-चार करोड़ रूपये कमाना है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा शर्तों में 'ऑल इंडिया सर्विस' (कंडक्ट) रुल्स 1968 के पैरा 6 (पेज 184) में स्पष्ट किया गया है कि मीडिया से जुड़कर या रेडियों के माध्यम से किसी भी तरह की गोपनियता को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। इसी के पैरा 7 में सरकार, सरकार से जुड़े मामलों एवं नीतिगत फैसलों की आलोचना भी नहीं की जा सकती है। पैरा 9 (पेज 185) में एकदम साफ लिखा है कि सरकारी निर्णयों, सूचनाओं, नीतियों और अनुबंधों को अपने विभाग के अलावा अन्य सरकारी कर्मचारी, विभाग या अन्य किसी भी व्यक्ति को बताना भी प्रतिबंधित है। फिर इतने बड़े पदों पर भारत सरकार को सेवा दे चुके अधिकारी नियमों की धज्जियां कैसे उड़ा रहे हैं और देश भक्त नेताओं की मौत के बाद उन्हें शक के घेरे में सिर्फ इसलिए खड़ा कर रहे हैं कि आज इनकी काल्पनिक किताबों में किये गये झूठे और आधारहीन रहस्योद्घाटन का खण्डन करने वाला कोई नेता मौजूद नहीं है।
देश के नेता मंत्री बनते समय गोपनीयता की शपथ लेते हैं और सिमित समय के लिए बने नेताओं से बड़ी और विश्वसनीयता के साथ तीस-चालीस साल तक महत्वपूर्ण पदों पर बैठने वाले अधिकारी भी नियुक्ति के साथ पद की मर्यादा, जिम्मेदारी, गोपनीयता, देश की अखण्डता के लिए शपथ लेते हैं। सेवानिवृत होते ही क्या पद की मर्यादा, गोपनीयता और देश भक्ति की शपथ से यह उच्च अधिकारी मुक्त हो जाते हैं? क्या सेवानिवृति के बाद सेवा काल के संस्मरणों के नाम पर देश की सुरक्षा से जुड़े फैसलों, नीतिगत निर्णयों को सार्वजनिक कर देश के दुश्मनों को मदद नहीं कर रहे हैं?
आज इन अधिकारियों को मर्यादा में रहने की शिक्षा देनी चाहिये, लेकिन आज पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी जैसे नेता नहीं हैं और अटल बिहारी वाजपेयी इन्हें रोकने में सक्षम नहीं है यह काम देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही करना होगा। दुनियाभर के देशों में भारत की नई छवि बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इन सेवानिवृत अधिकारियों से सावधान होना चाहिये। कहीं ऐसा नहीं हो कि जिन अधिकारियों को नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की शपथ लेते ही अपनी सरकार का पहला संशोधन लाकर अपने निजी और गोपनीयता में साझेदार बनाया है, कल वही अधिकारी सेवानिवृत होकर अपनी किताबें बेचने कि लिए नरेन्द्र मोदी और नागपुर के रिश्तों के रहस्योद्घाटन करें। ऐसा ना हो कि गुजरात कैडर के अधिकारी 2002 के दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौन सहमति पर अपनी उपस्थिती की छाप लगाकर आपकी लोकप्रियता को आपके जीवनकाल या बाद में भी धूमिल करते रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे अधिकारियों की किताबी रहस्योद्घाटन की प्रवृति परम्परा और शगूफेबाजी को रोक सकते हैं। आप एक बार उनके आपातकाल से अब तक के रहस्योद्घाटन पर नजर डालें तो आप पायेंगे कि ऐसे लेखक भाजपा और नरेन्द्र मोदी के लिए भी उपयोगी या राजनैतिक सहयोगी नहीं हो सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)