Tuesday, October 25, 2016

तलाक कौन सी? कुरान या अदालती

तलाक कौन सी? कुरान या अदालती

अब्दुल सत्तार सिलावट

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के महोबा की परिवर्तन रैली की आम सभा में सोमवार को कहा कि देश में कन्या भू्रण हत्या के साथ मुस्लिम बेटियों की तीन तलाक को भी बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। बहुत अच्छा लगा। पूरे देश को अच्छा लगा। सिर्फ हिन्दू भाईयों को ही नहीं, उनके साथ देश भर के जागरूक, बुद्धिजीवी और इस्लाम, दीन और कुरान शरीफ को समझने वाले मुसलमानों को भी प्रधानमंत्री की मुस्लिम बेटियों की चिंता से ‘शुकून’ मिला।
तीन तलाक एक साथ कहकर किसी भी औरत की जिंदगी बर्बाद, भविष्य अंधकारमय करने के खिलाफ भारत के प्रधानमंत्री या देश की कानून व्यवस्था ही नहीं बल्कि खुद इस्लाम और कुरान शरीफ में तलाक की बताई गई तफसील भी खिलाफ है। मुस्लिम पर्सनल लॉ और इस्लाम के कानूनों पर एक किताब ‘मुल्ला ऑन मोहम्मदन लॉ’ में कुरान की आयत संख्या 225 से 235 के हवाले से बताया गया है कि सुन्नती तलाक में दो तरीके हैं, एक तलाक-उल-हसन। दूसरा तलाक-उल-अहसन। इनमें पहले तरीके में कुरान शरीफ बताता है कि तीन तलाक में से पहली तलाक के बाद एक महिने तक पति पत्नि साथ रहकर सुलह का इंतजार करे। यदि कोई सुलह नहीं होती है तो दूसरे माह में दूसरी तलाक और फिर भी सुलह नहीं हो तो तीसरे माह में आखिरी तीसरी तलाक दी जाए। तीसरी तलाक कहने के बाद यदि तीसरा महिना खत्म होने के एक दिन पहले भी सुलह हो जाये तो सभी तलाकें रद्द हो जाती है।
कुरान शरीफ में तलाक के लिए हिदायत है कि यदि औरत माहवारी(नापाकी) में है या प्रसवकाल के शुरू के तीन महिने निकल चुके हैं तो तलाक नहीं दी जा सकती है तब तलाक देने की मियाद प्रसवकाल के बाद ही शुरू हो सकती है। जबकि इन दिनों देश भर में तीन तलाक को ऐसे बताया जा रहा है जैसे मुसलमान एक मिनट में अपनी औरत को तीन बार तलाक कहकर घर से धक्के देकर गली-सड़क पर निकाल फैंकता है।
कुरान शरीफ में सबसे बुरा तलाक को माना गया है, लेकिन औरत-मर्द के साथ नहीं रह पाने या घुटनभरी मजबूरन जिंदगी से निजात पाने के लिए आखिरी समाधान में तलाक को मंजुरी दी है वह भी औरत के हकों की हिफाजत करते हुए। अब एक तरफ पति-पत्नि के एक साथ नहीं रहने के हालात में इस्लाम में तीन माह में नई जिंदगी का रास्ता दिखाया है वहीं हमारे भारतीय संविधान में देश भर के न्यायालयों में तलाक के मुकदमों की ‘एवरेज लाइफ’ पाँच से आठ साल आती है। इसका मतलब एक औरत पति से तलाक के लिए न्यायालय और वकीलों के दफ्तर में सालों चक्कर लगाती रहे। 
इसी बीच न्यायालयों में औरत और मर्द द्वारा दिये जा रहे बयानों से इतनी दूरियां बढ़ जाती है कि मर्द औरत को अपने घर से ही निकाल देता है या बच्चों के भरण-पोषण के लिए औरत भटकती रहे। समाज तलाक के लिए कोर्टों के चक्कर लगा रही महिला को सम्मान से नहीं देखता है। इन हालात में आप स्वयं फैसला लें कि इस्लाम और कुरान में औरत को तलाक के दिये अधिकार सुन्नत तरीके तलाक-उल-हसन का तीन माह का तरीका सही है या हमारे देश की न्यायालयों से वर्षों चक्कर लगाकर मिलने वाली तलाक बेहतर है।
देश के आलीम, मुस्लिम विद्वान और राजनीति से दूर बैठे मुसलमानों की मौजूदा हालात की समीक्षा करने वाले तो यहां तक बताते हैं कि आज देश में मुसलमानों की तीन तलाक, सूर्य नमस्कार, वंदे मातरम या भारत माता की जय बोलने तक की समस्या नहीं है। बल्कि स्वयं मुसलमान एक राजनैतिक समस्या है। जब तक देश का मुसलमान अपने वोट की राजनैतिक दिशा नहीं बदलेगा तब तक भारत के मुसलमानों को ऐसे मुद्दों का मुकाबला करना ही पड़ेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, प्रधान सम्पादक दैनिक महका राजस्थान एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Wednesday, October 5, 2016

प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर ‘लुका-छिपी’ खेल रहे हैं... Pollution Control Game in Pali Taxtile Industries


प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर ‘लुका-छिपी’ खेल रहे हैं...
अब्दुल सत्तार सिलावट
पाली की रंगाई छपाई फैक्ट्रीयों के प्रदूषण का स्थाई हल राजनेता, प्रदूषण रोकने वाले सीईटीपी और सरकार के प्रदूषण विभाग तथा उनके मंत्री भी अच्छी तरह से जानते हैं। लेकिन पिछले तीन दशक से कांग्रेस भाजपा की सरकारों के मंत्री और अधिकारी जानबूझकर प्रदूषण के स्थाई समाधान के ‘फार्मूले’ को टाल-मटोल या नजर अंदाज कर अपना ‘लक्ष्य’ पूरा करते रहे हैं। फैक्ट्रीयों के उज्जवल भविष्य को बनाने में लगे नेता ‘एनजीटी’(राष्ट्रीय हरित अधिकरण) को भ्रमित करने में ‘फेल’ रहे हैं और हाल की पेशी पर फैक्ट्रीयां ‘बंद-चालू’ के बयानों में स्वयं ही उलझकर दीपावली की चमक को फीकी कर बैठे हैं।

          जयपुर। बचपन में छोटे-भाई बहिनों के साथ घर के दो-तीन कमरों में जब ‘लुका-छिपी’ का खेल खेलते थे तब भोले-भाले छोटे भाई बहन जो अच्छी तरह छुप नहीं पाते थे, उन्हें देखकर भी अन्जान बनकर दूसरे कमरों में ढूंढ़ते थे और बाद में उन्हें नहीं पकड़ पाने में हारकर उन्हें जीत की खुशी देते थे।
         बस ऐसा ही ‘लुका-छिपी’ का खेल पश्चिमी राजस्थान की टेक्सटाईल नगरी पाली में पिछले सवा महिने से बंद पड़ी फैक्ट्रीयों को चालू करवाने के नाम पर राजनेता, उद्योग प्रतिनिधि, प्रदूषण नियंत्रण मंडल और राजस्थान सरकार के पर्यावरण मंत्री सब कुछ जानते हुए भी अन्जान बनकर खेल रहे हैं।
         पाली के चार औद्योगिक क्षेत्रों में छः सौ फैक्ट्रीयां हैं तथा इनसे निकलने वाले प्रदूषित पानी को साफ करने के लिए छः ट्रीटमेंट प्लांट बने हुए हैं। कुल छः सौ फैक्ट्रीयों में से साढ़े पांच सौ फैक्ट्रीयों का प्रदूषित पानी सिर्फ दो ट्रीटमेंट प्लांट साफ कर सकते हैं जबकि शेष बची पचास से साठ फैक्ट्रीयां जो अपने आप में पावर प्रोसेस मिल के बराबर हैं, उनसे निकलने वाले प्रदूषित पानी को अभी चल रहे छः ट्रीटमेंट प्लांटों के साथ छः और नये ट्रीटमेंट प्लांट बना दिये जायें तब भी इन मिलों से बाढ़ की तरह निकलने वाले पानी को बिना ट्रीटमेंट के बांडी नदी में मजबूरन डालना होगा जैसा अब तक होता रहा है।
          पाली की 90 प्रतिशत हैण्ड प्रोसेस फैक्ट्रीयों की ‘आहुति’ इन 50-60 बड़े पावर प्रोसेस मिलों को चलाने की जिद में पिछले सवा महिने से बंद रखकर दी जा रही है। इस बात को पाली के राजनेता, प्रदूषण नियंत्रण मंडल के पाली से जयपुर तक बैठे उच्च अधिकारी एवं जिला प्रशासन खूब अच्छी तरह से जानता है। लेकिन इन 50-60 बड़े पावर प्रोसेस मिलों का सीईटीपी से लेकर भाजपा सरकार के नेताओं और प्रदूषण मंडल के चेयरमैन और पर्यावरण मंत्री तक इतना प्रभाव, इतनी अच्छी और मजबूत पकड़ है कि जब तक इनके इच्छानुसार और इनके हित का निर्णय नहीं होगा तब तक ये पाली की फैक्ट्रीयों की चिमनियों से धुंआ नहीं निकलने देंगे।

कौन हैं ‘बड़े’
          बड़े पावर प्रोसेस मिलों के मालिक पिछले तीस साल में सीईटीपी के बड़े पदों पर रहे उद्यमी हैं। राजनीति में कांगे्रस-भाजपा में नगर परिषद चेयरमैन, शहर-ब्लॉक अध्यक्ष पदों पर रह चुके नेता और मौजूदा भाजपा सरकार में जयपुर, दिल्ली में बैठे नेताओं के ‘प्रियजन’ भी बड़ों की सूचि में शामिल हैं। पाली के उद्योगों को जिंदा रखना है तो सरकार सख्ती के साथ पावर प्रोसेस मिलों को तत्काल बंद करे।

खेल केएलडी का
          सीईटीपी के पदाधिकारियों के पास एक ताकत केएलडी बांटने का ‘वीटो’ पावर है जिसमें दो हजार वर्ग मीटर की एक फैक्ट्री के पास मात्र 48 केएलडी प्रदूषित पानी ट्रीटमेंट प्लांट तक भेजने का अधिकार है। जबकि दो हजार वर्ग मीटर वाली ही कई फैक्ट्रीयों को सीईटीपी द्वारा तीन सौ केएलडी तक आवंटित किया गया है और नियमों को ‘पर्स’ में रखकर केएलडी लुटाने का खेल किया गया है। केएलडी लूटने के आरोप भी सीईटीपी के बड़े पदाधिकारियों पर अधिक लग रहे हैं।

सबसे शर्मनाक
          सीईटीपी ने केएलडी लुटाने के साथ अपने चहेतों और व्यावसायिक रूप से लाभ देने वालों में जिन उद्योगों के पास मात्र 15 और 17 केएलडी आवंटित है उनकी फैक्ट्रीयों से 200 से 300 केएलडी प्रदूषित पानी ट्रीटमेंट प्लांट में भेजने का अधिकार भी है। सरकार को इन फैक्ट्रीयों का सर्वे कर जिन लोगों ने बिना केएलडी के बड़े पावर प्रोसेस की मशीनें लगाई हैं उन्हें बेनकाब कर केएलडी तत्काल रद्द कर पूरी पाली के लिए केएलडी आवंटन का ‘पुनायता’ फार्मूला लागू किया जाये।