Thursday, June 30, 2016

चीन की सरकार का रोजा रखने पर प्रतिबंध


चीन की सरकार का रोजा रखने पर प्रतिबंध

अब्दुल सत्तार सिलावट

दुनिया में मात्र चीन एक ऐसा देश है जो माहे रमज़ान में अपने देश के मुसलमानों को रोजा नहीं रखने का आदेश देता है। रोजा रखने पर प्रताड़ित करता है। माहे रमज़ान में मुसलमानों को दिन में भी खाने पीने की होटलों को खुला रखने और मुस्लिम होटलों में माहे रमज़ान में भी खाने के साथ शराब परोसने का ‘आदेश’ देता है। ऐसा नहीं करने वाले मुसलमानों की होटलों के लाइसेंस रद्द कर दिये जाते हैं, उन्हें आर्थिक दण्ड दिया जाता है ऐसा आदेश कोई एक-दो साल से नहीं है और यह भी छुपाकर नहीं। यह सब चीन की सरकार वर्षों से कर रही है। हर साल रमज़ान में चीनी सरकार द्वारा मुसलमानों पर रोजा नहीं रखने और मुस्लिम होटलों में शराब परोसने के आदेश की खबरें पूरी दुनिया में छपती है, उसके बाद भी चीनी उत्पादों का सबसे बड़ा मार्केट मुस्लिम देश सऊदी अरब, तुर्की, ईरान, दुबई, शारजाह, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और खाड़ी के सभी देश हैं जहां चीन की बनी टोपी पहनकर, चीन की बनी ‘जा-नमाज़’ (मुसल्ला) पर सजदे कर दुनिया भर के मुसलमान नमाज़ अदा करते हैं।
सऊदी अरब में हर साल हज पर आने वाले दुनिया भर के तीस लाख से भी अधिक मुसलमान चीन के बने करोड़ों के सामान लेकर अपने देश जाते हैं, जिसमें मुसल्ले, टोपी के अलावा चीन की बनी ‘तस्बीह’ (मोतियों की माला), कपड़े, बच्चों के खिलौने, टॉर्च, इलेक्ट्रोनिक सामान भी साथ लेकर जाते हैं। चीन की अर्थव्यवस्था, चीन की इंडस्ट्रीज और चीन की दुनिया को ‘आँख’ दिखाने की ताकत का मूल स्रोत दुनिया भर के मुस्लिम देश हैं और सभी मुस्लिम देश इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि चीनी सरकार अपने देश के मुसलमानों को रमज़ान में रोजे नहीं रखने देती है और मुस्लिम होटलों पर रमज़ान में खाने-पीने के सामान के साथ शराब परोसने पर भी मजबूर करती है।
दुनिया के 55 मुस्लिम देश जिनकी सीमाएं चीन से नहीं जुड़ी हैं। जिनकी कोई मजबूरी नहीं है, वे भी चीन को मुसलमानों के शोषण से रोकने के लिए आगे नहीं आते हैं। क्या चीन की ताकत रूस और अमेरिका से भी अधिक मान ली गई है या चीन से कोई पंगा नहीं लेना चाहता है।

चीनः रूस और अमेरिका से बड़ा है क्या?

सऊदी अरब के शेख, राजा। मस्जिद में अज़ान होने पर एयरपोर्ट पर अमेरिका के राष्ट्रपति से हाथ मिलाना छोड़ पहले नमाज़ अदा करने जाते हैं। कुवैत, इराक, सीरिया में बेगुनाह मुसलमानों को बचाने के लिए अमेरिकी, रूस और फ्रांस को हवाई हमलों के लिए आर्थिक मदद देने को तैयार रहता है। वहीं सऊदी अरब चीनी सरकार द्वारा चीन के मुसलमानों पर रमजान में रोजा नहीं रखने और मुस्लिम होटलों में खाने के साथ शराब परोसने के सरकारी आदेश के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाता है? सऊदी अरब मुस्लिम देशों को चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने का ‘फतवा’ जारी क्यों नहीं करता है।


चीनः हाय रे, ये मजबूरियां 

हमारी आजादी के बाद पहला दोस्ती का हाथ चीन ने बढ़ाकर 1962 में हमें धोखे में रखकर हमारी उत्तरी सीमाओं पर हमला कर हमारी तरक्की को एक दशक पीछे धकेला। आजादी के 70 साल बाद भी हम उसी चीन से दोस्ती कर पड़ौसी से अच्छे रिश्तों का परिचय देने में पिछले दो साल से मोदी सरकार के प्रयासों को देख रहे हैं, लेकिन चीन अब तक भारत को अपनी ओर से ‘दोस्तों’ की लिस्ट में शामिल नहीं कर पाया है इसका पक्का सबूत हाल ही में एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप) की सदस्यता के लिए विरोध नहीं करने की खुल कर अपील के बाद भी चीन ने अपना रूख नहीं बदला और दो कदम आगे बढ़कर पाकिस्तान को भी एनएसजी में सदस्य बनाने की वकालत कर डाली।
हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति से रूस की धरती पर ताशकन्द सम्मेलन में अलग से सिर्फ एनएसजी पर समर्थन के लिए बैठक कर पूरी दुनिया को दिखा दिया कि हम चीन से सहयोग मांग रहे हैं। दूसरी ओर हमारे वित्त मंत्री अरुण जेटली पाँच दिन की यात्रा पर चीन गये और इसी दौरे में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी चीन में मौजूद रहीं। इतने प्रयासों के बावजूद चीन ने हमारी सदस्यता के लिए समर्थन तो दूर की बात विरोध का स्वर भी बंद नहीं किया।
आजकल सोशल मीडिया पर चीन के एनएसजी विरोध को लेकर बहुत सी प्रतिक्रिया प्रबुद्ध नागरिकों की आ रही है उनमें एक सुझाव चीन से आ रहे कुड़े, कबाड़े जैसे सामान जिनमें खिलौने, घड़ियां, कैमरे, एम्ब्राइडरी मशीनरी, टायर और बहुत सी ऐसी सामग्री जिसके पीछे हमारी मानसिकता ‘यूज एण्ड थ्रो’ जैसी हो गई है, ऐसे सामान पर रोक लगनी चाहिये। भारत दुनिया का सबसे बड़ा ‘कन्ज्यूमर’ मार्केट है। जहां कोई भी देश प्रवेश कर अपना सामान बेचकर अपने देश की अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ कर देता है।
सोशल मीडिया के सुझावों में बहुत दम है। भारत सरकार को एक बार ऐसा निर्णय लेकर चीन के घमण्ड को तोड़ने का प्रयास करना चाहिये। ऐसे निर्णय से चीन की हठधर्मिता पर ब्रेक तो लगेगा ही हमारे देश के बहुत से छोटे-मोटे कुटीर उद्योग जिनको चीनी सामान ने बंद कर रखा है पुनः शुरु होकर देश में रोजगार के साथ आर्थिक मजबूती भी देंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Wednesday, June 29, 2016

महारानी जीः रूस से डेयरी तकनीक भी लावें


महारानी जीः रूस से डेयरी तकनीक भी लावें

अब्दुल सत्तार सिलावट

राजस्थान में सड़कें, चिकित्सा, शिक्षा और जल संसाधन में वसुन्धरा सरकार तेज गति से आगे बढ़ रही है, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा, कृषि में भी विकास की दौड़ जारी है। अब एक क्षेत्र बचा है ‘श्वेत क्रांति’। दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लगी डेयरियों के मालिक, किसान परेशान है, संघर्ष कर रहे हैं। जबकि आपकी सरकार का डेयरी विभाग सरस के नाम पर सस्ता दूध खरीदकर आपकी जनता को महंगा बेचकर करोड़ों रूपये का लाभ कमा रहा है।
राजस्थान में आम आदमी पेयजल के संकट से जूंझ रहा है वहीं दूध उत्पादक डेयरी का किसान गाय-भैंसों को महंगा चारा, कुट्टी, पशु आहार के साथ टेंकरों का महंगा पानी खरीद कर दूध की मांग पूरी कर रहा है। सरकार की सरस डेयरी किसानों और डेयरी वालों से 32 से 34 रूपया लीटर में दूध खरीदकर ‘गोल्ड’ के नाम से 48 रूपये में बेचती है। सरस दूध को सिर्फ ठंडा कर थैली में पैक करने के बाद 14 से 16 रूपये लीटर कमाता है जबकि किसान और डेयरी चला रहे मालिक पशुओं से अधिक दूध निकालने के लिए ‘इंजेक्शन’ लगाकर पशु शोषण के आरोप से परेशान है।
मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे से अनुरोध है कि जब आप रूस यात्रा पर जा ही रहे हैं तो बाकी उद्योग और विकास योजनाओं के साथ रूस की डेयरी तकनीक को भी राजस्थान में लाने का प्रयास करें। रूस की गाय-भैसों की उन्नत नस्लों और रूस की डेयरी योजनाओं का लाभ राजस्थान के पशु पालकों और डेयरी व्यवसाय से जुड़े किसानों तक पहुँचाकर राजस्थान में एक बार फिर नई ‘श्वेत क्रांति’ शुरु करने का अभियान चलायें।

हमारी नस्ली गायें ‘ब्राजील’ से इम्पोर्ट करते हैंः मेहता

भगवान महावीर विकलांग समिति के संस्थापक एवं एफआईएपीओ के ट्रस्टी डा. डी.आर. मेहता ने बताया कि विश्व में सबसे अधिक दूध देने वाली गाय ब्राजील से भारत में ‘इम्पोर्ट’ की जाती है। जबकि ब्राजील ने गुजरात के ‘गिर’ क्षेत्र से इन गायों की नस्ल को ले जाकर उन्नत किया है।
डा. मेहता ने पशु संरक्षण संगठन एफआईएपीओ द्वारा शहरी क्षेत्र की 49 डेयरियों के किये गये सर्वे पर जारी रिपोर्ट का विमोचन करते हुए कहाकि सरकार को शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में डेयरी विकास के लिए मवेशियों के अधिकारों के उल्लंघन को रोकने, समय पर मवेशियों के स्वास्थ्य जाँच का अभियान चलाना चाहिये।
‘फिएपो’ द्वारा रंगीन फोटो सहित प्रकाशित डेयरी रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ डेयरी केटल-राजस्थान’ में दुधारू पशुओं के साथ मानवीय शोषण के दिल दहलाने वाले फोटो और रिपोर्ट भी आंकडों सहित दी गई है। संगठन की ओर से श्रीमती टिम्मी कुमार ने सरकार से मवेशी संरक्षण कानून को सख्ती से लागू करने की मांग करते हुए कहा कि सर्वे रिपोर्ट मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को पेश कर डेयरियों में मूक पशुओं के साथ हो रहे मानवीय क्रूरता के खिलाफ अभियान चलाया जायेगा।
‘फिएपो’ की ओर से सुश्री वर्दा मेहरोत्रा ने बताया कि संगठन द्वारा सर्वे में मुख्य रूप से डेयरी मालिकों का ध्येय मात्र अधिक दूध से रूपया कमाना ही देखा गया है भले ही गाय-भैंस अस्वस्थ हों, बिना सुविधा के कम फेट वाला और रोग ग्रस्त दूध ही देती हो।
‘फिएपो’ ने सरकार से अवैध और बिना पशु सुविधाओं के चल रही डेयरियों को तत्काल बंद करने एवं डेयरी मालिकों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही करने की मांग की है।

शहर की डेयरियों से दूध के साथ बीमारियां

भारतीय पशु संरक्षण संगठनों के परिसंघ (फिएपो) की ओर से राज्य के प्रमुख शहरों के साथ गांवों की 49 डेयरियों पर मवेशियों के रख-रखाव, उनके चारा-पानी एवं अन्य सुविधाओं पर सर्वे के बाद दुःखद और चौंकाने वाले तथ्यों को मीडिया के सामने रखते हुए ‘फिएपो’ की ओर से श्रीमती टिम्मी कुमार ने बताया कि छोटे-छोटे कमरों में गाय और भैंसों को छोटी रस्सी से बंाधकर बैठने की जगह नहीं होने के कारण दिनरात खड़ा रखा जाता है। साथ ही अधिक दूध लेने के लिए नियमित रूप से अवैध ड्रग्स ऑक्सीटोसीन इंजेक्शन का उपयोग कर अप्राकृतिक रूप से दूध बढ़ाकर मवेशियों की शोषण किया जा रहा है।
श्रीमती टिम्मी कुमार ने बताया कि ‘फिएपो’ के सर्वे में 87 प्रतिशत डेयरियों में मवेशियों को बीमार अवस्था में गन्दगी में ही दिन रात खड़े रखा जाता है। गोबर, मूत्र में मवेशियों के नियमित पड़े रहने से शरीर पर घाव और अंग-भंग होना भी पाया गया। कुमार ने बताया कि शहरी बस्तियों में प्रबुद्ध नागरिकों, सरकार के सक्षम अधिकारियों के बीच पशु संरक्षण नियमों का मजाक उड़ाया जा रहा है।
जयपुर की क्लार्क्स आमेर होटल में आयोजित प्रेस वार्ता में श्रीमती टिम्मी कुमार ने बताया कि एक स्वस्थ गाय की सामान्य उम्र 25 साल तक होती है जबकि दूध के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अवैध ड्रग्स एवं स्वस्थ वातावरण नहीं मिलने पर पाँच साल में ही गाय अस्वस्थ होकर मर जाती है या फिर उसे बूचड़खाने को बेच दिया जाता है। आपने बताया कि शहरी डेयरियों में दूध के साथ ड्रग्स, अवैध इंजेक्शन की बीमारियां बेची जा रही है। बीमार मवेशियों का दूध पीने से बच्चों में भी कई बीमारियां कम उम्र में ही घर कर लेती है।
‘फिएपो’ की तरफ से सुश्री रूचि मेहता, श्वेता सूद, वर्दा मेहरोत्रा एवं अभिषेक सिंह ने शहरी डेयरियों के मवेशियों पर हो रहे शोषण की विस्तृत जानकारी दी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Tuesday, June 21, 2016

पाली के दूध की गुणवत्ता राष्ट्रीय स्तर पर


पाली के दूध की गुणवत्ता राष्ट्रीय स्तर पर

अब्दुल सत्तार सिलावट

राजस्थान में दूसरी बार सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने राजस्थान में दूध की नदियां बहाने का आव्हान करते हुए ‘श्वेत क्रांति’ का नारा दिया था और श्वेत क्रांति का मिशन लेकर आगे बढ़ रही राज्य की ‘सरस डेयरी’ ने ग्रामीण स्तर पर लाखों दुग्ध उत्पादकों में डेयरी से जुड़कर पशुधन विकास का विश्वास पैदा किया है इसी मिशन में पश्चिमी राजस्थान के पाली जिला मुख्यालय की सरस डेयरी भी है जो अपनी उत्पादन क्षमता से डेढ़ गुना अधिक दूध संग्रह कर घी, पनीर, श्रीखण्ड, दही, छाछ और लस्सी जैसे उत्पादों में विशेष गुणवत्ता की पहचान रखती है।
पाली डेयरी पिछले चार दशक से रेगिस्तान से जुड़े गाँवों में कम पशुधन होने के बावजूद छोटे-छोटे गाँवों, आदिवासी क्षेत्रों एवं मुख्य सड़क मार्ग से दूर-दराज के गाँवों से भी दूध संकलन कर श्वेत क्रांति के मिशन में सक्रिय रही है। प्रारम्भ के डेढ़ दशक तक पाली डेयरी सिर्फ दूध संकलन कर दिल्ली की मदर डेयरी को देता था और मदर डेयरी दिल्ली में पाली के दूध की गुणवत्ता का आज भी उल्लेख किया जाता है। पिछले दिनों श्वेत क्रांति पर राष्ट्रीय स्तर के अंग्रेजी समाचार पत्र ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित लेख में पाली डेयरी के दूध की उच्च गुणवत्ता का उल्लेख भी किया गया था।
राजस्थान में पशुधन के लिए सम्पन्न जिले की इक्कीस डेयरियों में जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा और अलवर के बाद पांचवें स्थान पर पाली डेयरी दुग्ध संकलन एवं उत्पादों की गुणवत्ता में महत्व रखती है जबकि पाली जिले की सुमेरपुर मंडी नकली घी उत्पादन का मुख्य केन्द्र होने के बाद भी पाली की सरस डेयरी का बना घी शादी-ब्याह, हलवाईयों एवं असली घी का उपयोग करने वालों में मार्केट रेट से सौ-पचास रूपया अधिक दर पर माँग में रहता है।
पाली सरस डेयरी से जिले भर के 548 दुग्ध उत्पादक जुड़े हुए हैं तथा दुग्ध संग्रह के लिए बड़े गांवों के संग्रहण केन्द्रों पर दूध की गुणवत्ता, फेट प्रतिशत के आधार पर दूध लेते समय ही गुणवत्ता के साथ दूध के मूल्य की स्लिप कम्प्यूटर द्वारा बनाकर दे दी जाती है जिसका भुगतान दो सप्ताह में केन्द्रों के मार्फत किया जाता है।
पाली डेयरी के संचालक मण्डल के ग्यारह सदस्यों को साथ लेकर डेयरी विकास में सक्रिय अध्यक्ष प्रतापसिंह बिठियां का उल्लेखनीय योगदान रहा है। बिठियां 2005 से निरन्तर तीसरी बार पाली डेयरी संचालक मण्डल के निर्विरोध अध्यक्ष बनते आ रहे हैं। जिले के पशुधन और दूध उत्पादन से जुड़े किसानों को अध्यक्ष प्रतापसिंह बिठियां पर इतना भरोसा है कि डेयरी के संकलन केन्द्रों द्वारा जारी फेट प्रतिशत और मूल्य रसीद को लेकर संतुष्टी है।

पाली डेयरी को भारत सरकार का सहयोग

पाली डेयरी के उप प्रबंधक हेमसिंह चूण्डावत ने बताया कि डेयरी को भारत सरकार से 8 करोड़ रूपया नये भवन एवं मशीनरी के लिए मिल रहा है। डेयरी में दो करोड़ की लागत से नया भवन निर्माण कर पैकिंग की अतिआधुनिक टेट्रा पैक मशीन लगाई जाएगी।
चूण्डावत ने बताया कि राज्य में कुछ बड़ी डेयरी में अब तक दूध उत्पादों में पावडर भी बन रहा है जबकि पाली डेयरी विस्तार योजना में तीस करोड़ लागत की मशीनरी वाला पावडर उत्पादन प्लांट भी शामिल है। आपने बताया कि नई तकनीक से दूध को प्रोसेस कर लम्बे समय तक टेट्रा पैक में सुरक्षित रखा जा सकता है।
उप प्रबंधक ने बताया कि पाली डेयरी की 70 हजार लीटर की क्षमता के बाद भी टीम द्वारा सवा लाख लीटर तक प्रतिदिन दूध प्रोसेस के साथ डेढ़ लाख लीटर दूध भण्डारण की व्यवस्था भी है।

अमूल से कम पैसा, सीधा किसान को भुगतान नहीं

पाली जिले के माण्डल गाँव के सर्वाधिक ढ़ाई सौ भैंसों एवं सौ गायों की डेयरी चला रहे गणेश गहलोत ने बताया कि पाली डेयरी राज्य में अन्य डेयरियों के मुकाबले दूध का कम मूल्य देती है। अजमेर डेयरी 590 रूपये जबकि पाली डेयरी 550 रूपये ही देती है।
गहलोत ने राष्ट्रीय राजमार्ग 14 पर स्थित गाँव ढ़ोला से तीन किलोमीटर अन्दर माण्डल गाँव में अपने निजी कुएं पर आधुनिक सुविधा वाले पक्के शैड बनाकर गाय, भैंसों के लिए हरा चारा स्वयं के खेत में उगाते हैं। खल, पशु आहार, कुट्टी के लिए पक्के गौदामों के साथ यूपी के पशु सेवकों से भैंसों, गायों की मालिश, स्नान एवं हाथों से दुहाई करवाते हैं।
जीवन के कई वर्षों तक मुम्बई महानगर में व्यवसाय करने के बाद अपने धरती प्रेम से मोहित होकर गणेश के साथ रतन माली भी दूध कारोबार को बढ़ाना चाहते हैं। हरियाणवी भैंसों के साथ दो-दो लाख के ‘पाड़े’ (नर) रखने वाले युवा दूध उत्पादकों को भारत सरकार की श्वेत क्रांति प्रोत्साहन योजनाओं में आर्थिक सहयोग नहीं देने, कम ब्याज पर ऋण एवं अनुदान नहीं मिलने से शिकायत भी है। विशेषकर नाबार्ड, ग्रामीण एवं व्यावसायिक बैंक बड़े दूध उत्पादकों को ऋण, अनुदान एवं बीमा सुविधा नहीं दे रही है। गहलोत का दावा है कि अमूल गुजरात के दूध ईकाई को सीधा भुगतान करती है जबकि पाली डेयरी संगठन केन्द्रों के मार्फत भुगतान करने से किसान को साढ़े तीन प्रतिशत कम भुगतान मिलता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)