पाली के दूध की गुणवत्ता राष्ट्रीय स्तर पर
अब्दुल सत्तार सिलावट
राजस्थान में दूसरी बार सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने राजस्थान में दूध की नदियां बहाने का आव्हान करते हुए ‘श्वेत क्रांति’ का नारा दिया था और श्वेत क्रांति का मिशन लेकर आगे बढ़ रही राज्य की ‘सरस डेयरी’ ने ग्रामीण स्तर पर लाखों दुग्ध उत्पादकों में डेयरी से जुड़कर पशुधन विकास का विश्वास पैदा किया है इसी मिशन में पश्चिमी राजस्थान के पाली जिला मुख्यालय की सरस डेयरी भी है जो अपनी उत्पादन क्षमता से डेढ़ गुना अधिक दूध संग्रह कर घी, पनीर, श्रीखण्ड, दही, छाछ और लस्सी जैसे उत्पादों में विशेष गुणवत्ता की पहचान रखती है।
पाली डेयरी पिछले चार दशक से रेगिस्तान से जुड़े गाँवों में कम पशुधन होने के बावजूद छोटे-छोटे गाँवों, आदिवासी क्षेत्रों एवं मुख्य सड़क मार्ग से दूर-दराज के गाँवों से भी दूध संकलन कर श्वेत क्रांति के मिशन में सक्रिय रही है। प्रारम्भ के डेढ़ दशक तक पाली डेयरी सिर्फ दूध संकलन कर दिल्ली की मदर डेयरी को देता था और मदर डेयरी दिल्ली में पाली के दूध की गुणवत्ता का आज भी उल्लेख किया जाता है। पिछले दिनों श्वेत क्रांति पर राष्ट्रीय स्तर के अंग्रेजी समाचार पत्र ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित लेख में पाली डेयरी के दूध की उच्च गुणवत्ता का उल्लेख भी किया गया था।
राजस्थान में पशुधन के लिए सम्पन्न जिले की इक्कीस डेयरियों में जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा और अलवर के बाद पांचवें स्थान पर पाली डेयरी दुग्ध संकलन एवं उत्पादों की गुणवत्ता में महत्व रखती है जबकि पाली जिले की सुमेरपुर मंडी नकली घी उत्पादन का मुख्य केन्द्र होने के बाद भी पाली की सरस डेयरी का बना घी शादी-ब्याह, हलवाईयों एवं असली घी का उपयोग करने वालों में मार्केट रेट से सौ-पचास रूपया अधिक दर पर माँग में रहता है।
पाली सरस डेयरी से जिले भर के 548 दुग्ध उत्पादक जुड़े हुए हैं तथा दुग्ध संग्रह के लिए बड़े गांवों के संग्रहण केन्द्रों पर दूध की गुणवत्ता, फेट प्रतिशत के आधार पर दूध लेते समय ही गुणवत्ता के साथ दूध के मूल्य की स्लिप कम्प्यूटर द्वारा बनाकर दे दी जाती है जिसका भुगतान दो सप्ताह में केन्द्रों के मार्फत किया जाता है।
पाली डेयरी के संचालक मण्डल के ग्यारह सदस्यों को साथ लेकर डेयरी विकास में सक्रिय अध्यक्ष प्रतापसिंह बिठियां का उल्लेखनीय योगदान रहा है। बिठियां 2005 से निरन्तर तीसरी बार पाली डेयरी संचालक मण्डल के निर्विरोध अध्यक्ष बनते आ रहे हैं। जिले के पशुधन और दूध उत्पादन से जुड़े किसानों को अध्यक्ष प्रतापसिंह बिठियां पर इतना भरोसा है कि डेयरी के संकलन केन्द्रों द्वारा जारी फेट प्रतिशत और मूल्य रसीद को लेकर संतुष्टी है।
पाली डेयरी को भारत सरकार का सहयोग
पाली डेयरी के उप प्रबंधक हेमसिंह चूण्डावत ने बताया कि डेयरी को भारत सरकार से 8 करोड़ रूपया नये भवन एवं मशीनरी के लिए मिल रहा है। डेयरी में दो करोड़ की लागत से नया भवन निर्माण कर पैकिंग की अतिआधुनिक टेट्रा पैक मशीन लगाई जाएगी।
चूण्डावत ने बताया कि राज्य में कुछ बड़ी डेयरी में अब तक दूध उत्पादों में पावडर भी बन रहा है जबकि पाली डेयरी विस्तार योजना में तीस करोड़ लागत की मशीनरी वाला पावडर उत्पादन प्लांट भी शामिल है। आपने बताया कि नई तकनीक से दूध को प्रोसेस कर लम्बे समय तक टेट्रा पैक में सुरक्षित रखा जा सकता है।
उप प्रबंधक ने बताया कि पाली डेयरी की 70 हजार लीटर की क्षमता के बाद भी टीम द्वारा सवा लाख लीटर तक प्रतिदिन दूध प्रोसेस के साथ डेढ़ लाख लीटर दूध भण्डारण की व्यवस्था भी है।
अमूल से कम पैसा, सीधा किसान को भुगतान नहीं
पाली जिले के माण्डल गाँव के सर्वाधिक ढ़ाई सौ भैंसों एवं सौ गायों की डेयरी चला रहे गणेश गहलोत ने बताया कि पाली डेयरी राज्य में अन्य डेयरियों के मुकाबले दूध का कम मूल्य देती है। अजमेर डेयरी 590 रूपये जबकि पाली डेयरी 550 रूपये ही देती है।
गहलोत ने राष्ट्रीय राजमार्ग 14 पर स्थित गाँव ढ़ोला से तीन किलोमीटर अन्दर माण्डल गाँव में अपने निजी कुएं पर आधुनिक सुविधा वाले पक्के शैड बनाकर गाय, भैंसों के लिए हरा चारा स्वयं के खेत में उगाते हैं। खल, पशु आहार, कुट्टी के लिए पक्के गौदामों के साथ यूपी के पशु सेवकों से भैंसों, गायों की मालिश, स्नान एवं हाथों से दुहाई करवाते हैं।
जीवन के कई वर्षों तक मुम्बई महानगर में व्यवसाय करने के बाद अपने धरती प्रेम से मोहित होकर गणेश के साथ रतन माली भी दूध कारोबार को बढ़ाना चाहते हैं। हरियाणवी भैंसों के साथ दो-दो लाख के ‘पाड़े’ (नर) रखने वाले युवा दूध उत्पादकों को भारत सरकार की श्वेत क्रांति प्रोत्साहन योजनाओं में आर्थिक सहयोग नहीं देने, कम ब्याज पर ऋण एवं अनुदान नहीं मिलने से शिकायत भी है। विशेषकर नाबार्ड, ग्रामीण एवं व्यावसायिक बैंक बड़े दूध उत्पादकों को ऋण, अनुदान एवं बीमा सुविधा नहीं दे रही है। गहलोत का दावा है कि अमूल गुजरात के दूध ईकाई को सीधा भुगतान करती है जबकि पाली डेयरी संगठन केन्द्रों के मार्फत भुगतान करने से किसान को साढ़े तीन प्रतिशत कम भुगतान मिलता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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