Friday, February 26, 2016

...आम बजट एक साल का ही बनाऐं, 2020 तक नहीं


...आम बजट एक साल का ही बनाऐं, 2020 तक नहीं

अब्दुल सत्तार सिलावट                                                           
आज़ादी के बाद से हमारी सरकारें एक साल का लेखा-जोखा तैयार करती है और विकास की नई-नई योजनाएं, योजनाओं को लागू करने में आने वाले खर्च के लिए टैक्स लगाकर सरकारी खजाना भरना शामिल है और इसी को ‘बजट’ कहते हैं। अब तक बजट एक वर्ष को सामने रखकर बनाया जाता था, लेकिन नरेन्द्र मोदी की लोकप्रिय सरकार आने के बाद बजट की रुपरेखा और उसके दूरगामी परिणामों को वर्ष 2020 तक लाभकारी बताते हुए बनाया जा रहा है जबकि मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 2019 में ही खत्म हो जाएगा।
कल हमारे रेलमंत्री ने जो बजट पेश किया उसमें रेल मंत्रालय अगले एक साल में क्या करेगा इसकी चर्चा कम थी जबकि 2020 के होने वाले लाभ को ‘सालाना बजट’ में पेश कर दिया। अब हमारी सरकारों से अनुरोध है कि या तो आप सालाना बजट को पंचवर्षीय योजना की तरह चुनाव जीतकर सत्ता में आते ही अपने चुनावी घोषणा पत्र की तरह अपनी सरकार का ‘पांच साला बजट’ भी एक साथ पेश कर देंवे जिससे हर वर्ष फरवरी के अन्तिम दिन बजट पेश करने ‘झिक-झिक’ ही खत्म हो जाये और 26 जनवरी से मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री के साथ बजट बनाने वाले अधिकारियों से मिलकर सोने की आयात ड्यूटी कम करने, इंकम टैक्स सीमा बढ़ाने, एक्स्पोर्ट पर ड्रा बैक बढ़ाने, मार्बल, इलेक्ट्रोनिक, सौंदर्य प्रसाधनों में टैक्स छूट की मांग करने वाले चैम्बर ऑफ कॉमर्स, बड़े उद्योगपतियों और व्यावसायिक संगठनों को हर साल मिलने की बजाय पांच साल में एक बार ही ‘सरकार’ को अपने हितों के लिए ‘सैर’ करने की मेहनत करनी पड़े।
रेल मंत्री का बजट देखने के बाद देश के प्रधान और वित्त मंत्री नरेन्द्र मोदी और हमारे राजस्थान की मुख्य एवं वित्त मंत्री वसुन्धरा राजे साहिबा से अनुरोध है कि आप अपना बजट एक साल के लेखे-जोखे और विकास योजनाओं तक ही सीमित रखें। ‘रेल प्रभु’ की तरह 2020 तक की योजनओं को शामिल नहीं करें क्योंकि राजस्थान सरकार का कार्यकाल दिसम्बर 2018 और भारत सरकार का कार्यकाल मई 2019 तक ही है फिर आप 2020 तक बजट योजना में क्या आने वाली अगली सरकार को भी आपकी रीति-नीति या आपकी सोच लागू करने को बाध्य करने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे से अनुरोध एवं सुझाव है कि बजट में कुछ नया करना ही चाहते हैं तो इसे नाम के अनुरूप ‘आम बजट’ को आम आदमी के हितों को ध्यान में रखकर बनाऐं। अब तक बजट भाषण उद्योगपति, एक्स्पोर्टर, हैंडीक्राफ्ट, ज्वैलर्स तथा समाज का उच्च वर्ग ही अपने हितों में की गई घोषणाओं पर प्रशंसा या आलोचना करता है। इस बार ऐसा नवीन बजट पेश करें जिसे दूरदर्शन पर गाँव की चौपाल, खेत की मुण्डेर और गगनचुम्बी इमारतों के निर्माण में लगे मजदूरों को भी अपने हितों का बजट लगे एवं एक मार्च के अख़बारों की छीना झपटी शहरों से अधिक गाँवों, कस्बों एवं गरीब, मजदूर बस्तीयों में होनी चाहिये। सबको लगे कि हमारी सरकार आई है, गरीबों की सरकार आई है, ग्रामीणों की सरकार आई है। भले ही ये सरकार चुनावी वायदे के मुताबिक 15 लाख बैंक खाते में नहीं ‘डाल’ पाई है, लेकिन इस साल गरीब, मजदूर, ग्रामीण अपने परिवार के पेट में आसानी से भरपेट खाना डाल पायेगा। ऐसा बजट चाहिये... माई बाप... अन्न दाता... देश के भविष्य निर्माताओं से...।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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