Friday, August 28, 2015

दिल्ली गये थे देश बदलने, ओटन लगे कपास!



अब्दुल सत्तार सिलावट            

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आपने दिल्ली के लाल किले से दो बार देश में साम्प्रदायिकता रोकने और देश के विकास में सबको साथ लेने का नारा ज़रूर दिया, लेकिन इस नारे का अंज़ाम भी 27 अगस्त 2015 को गुजरात में भड़की हिंसा को रोकने के लिए आप द्वारा की गई अपील की तरह बेअसर ही रहा और जिस गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़कर आप गुजरात मॉडल जैसा भारत बनाने दिल्ली की संसद में पहुंचे थे वहाँ जाकर आप विदेश यात्राएं, अपने राजनीतिक विरोधियों को घर बैठाने, छोटे-छोटे देशों से दोस्ती कर संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्यता का समर्थन जुटाने में लगे हैं। वहीं देश में नक्सलवाद, कश्मीरी अलगाववाद, पाकिस्तानी आंतकियों की घुसपैठ और अब आरक्षण की माँग पर आपके गुजरात को सेना के सुपुर्द करना पड़ा। आज सेना गुजरात में, कल महाराष्ट्र और परसों बिहार चुनाव में होगी तो फिर चीन और पाकिस्तान की सीमाएं कौन सम्भालेगा।
प्रधानमंत्री जी आप दिल्ली जाने के मकसद से भटक गये हैं। 'गये थे देश बचाने और ओटन लगे कपास' वाली कहावत को सिद्ध करने लग गये हैं। आप उस व्यापारी या उद्योगपति जैसे बन गये हैं जिसकी फैक्ट्री में मशीनें ज़ंग खा रही हो, उत्पादन बंद हो, मज़दूर हड़ताल पर हो, लेकिन फैक्ट्री मालिक मंडियों में दौड़ भाग कर अपना उत्पादन बेचने के लिए ऑर्डर बुकिंग करता हो। उसे इस बात की चिंता नहीं है कि फैक्ट्री बंद है, माल कहां से भेजेंगे। बस, वैसे ही आप दुनिया भर में भारत के योग, भारत की परमाणु और सैन्य शक्ति, विकास की योजनाओं का बखान कर विदेश में बसे भारतीयों से तालियां बजवा रहे हैं और घर में साम्प्रदायिकता, जातिवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद का ज़हर बढ़ता जा रहा है।
आपकी पार्टी के अनुसार देश का सबसे काला अध्याय 'आपातकाल' में इंदिरा गांधी ने अख़बारों पर सेंसरशीप, अपने राजनीतिक विरोध की ख़बरों को रोकने के लिए लगाई थी, वैसे ही आज समय आ गया है कि देश के सोशल मीडिया और अख़बारों से अधिक सबसे तेज, सबसे पहले, ब्रेकिंग शगुफे पेश करने वाले इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सीमाएं तय की जाये। आज टीवी न्यूज़ चैनलों पर एक व्यक्ति अपने दिल में भरा ज़हर मुसलमानों की घर वापसी, मुसलमान लड़कियों से शादी कर हिन्दू बना दो, मुस्लिमों की बढ़ती आबादी देश के हिन्दूओं के लिए ख़तरा जैसे साम्प्रदायिक ज़हर को बिना परिणाम सोचे देश को भ्रमित कर रहे हैं। इस ज़हर पर हिन्दू और मुसलमानों के बड़े धर्म गुरू, राजनेता, सांसद और जि़म्मेदार पदों पर बैठे लोग आग पर पानी डालने के बजाये टीवी चैनलों की अदालतों, सीधी बात, इन्टरव्यू में साम्प्रदायिकता पर पेट्रोल छिड़क रहे हैं। ऐसे ऐसे तर्क देते हैं कि सीधा साधा साफ दिल वाला भारतीय (हिन्दू और मुसलमान दोनों ही) भी इनके तर्क सुनकर भगवा और हरा रंग का चौला धारण कर साम्प्रदायिकता की बहस का सहभागी बन बैठता है।
टीवी चैनलों का दूसरा ताजा उदाहरण गुजरात आरक्षण आन्दोलन है जिसमें 25 अगस्त की रात अहमदाबाद में एक इलाके में छिटपुट झड़प हुई, लेकिन टीवी कवरेज की प्रतिक्रिया में पूरा गुजरात दूसरे दिन सिर्फ इसलिए जलना शुरू हो गया कि हार्दिक पटेल का बयान टीवी चैनलों पर दिखाया गया जिसमें हार्दिक पटेल ने कहा कि 'हमारे लोगों को पुलिस ने घरों में घुसकर मारा, गाडिय़ों के शीशे फोडे।' हालांकि यह बात सत्य थी लेकिन सभी टीवी चैनलों ने जिस प्राथमिकता से पुलिस बर्बता की कवरेज की, उसी का परिणाम सेना का फ्लैग मार्च और हार्दिक पटेल द्वारा पहले पुलिस बर्बरता में शामिल अधिकारी और कर्मचारियों को बर्खास्तगी की मांग और मज़बूत होकर गुजरात को शांत होने से रोक रही है।
साम्प्रदायिकता एवं आरक्षण आंदोलन की बेलगाम कवरेज के बाद टीवी पर चलने वाले विज्ञापनों पर भी एक नज़र डालें। कण्डोम के जो विज्ञापन पहले दूरदर्शन पर रात 11 बजे के बाद दिखाये जाते थे, उन विज्ञापनों को सुबह से शाम हर चैनल पर 15 से 30 मिनट के अन्तराल पर युवती को लगभग निर्वस्त्र समुद्र किनारे लहरों के पानी भीगोकर इन शब्दों के साथ दिखाया जा रहा है कि 'दिन भर करने का मन....'। अब ऐसे विज्ञापन जब आप दिन भर दिखाओगे तो फिर आबादी कंट्रोल पर चिंता और बहस करना तो छोडऩा ही होगा। एक विज्ञापन में बारात में घोड़े की नाल में जंग होने से घोड़ा 'हिनहिनाता' है और कम्पनी कहती है जंग निरोधक सीमेन्ट वाले घर में जंग की नो एंट्री। पिछले पाँच साल से जंग निरोधक सीमेन्ट का प्रचार शुरु हुआ है, जंग की सच्चाई तो ईश्वर जाने, लेकिन क्या इससे पहले बिना जंग निरोधक सीमेन्ट से बनी इमारतें अब गिर जाऐंगी।
प्रधानमंत्री जी, आप जिस राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं उसकी पहचान नैतिकता, देशभक्ति, हिन्दू रक्षा जैसे नारों से होती है। आपको गुजरात के मुख्यमंत्री से दिल्ली की संसद और प्रधानमंत्री तक पहुँचाने में देश के इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया की भागीदारी उल्लेखनीय एवं प्रसंसनीय है। लेकिन अब समय आ गया है कि मीडिया की कुछ मर्यादाएं, कुछ सीमाएं ज़रूर तय कर लेनी चाहिये अन्यथा बिहार चुनाव में मतदाताओं को भाजपा से जोडऩे के लिए टीवी चैनलों के लिए 'कण्डोम' का विज्ञापन बनाने वाली पीआर कम्पनीयां भाजपा के कमल को गुटखा, खैनी, माचिस, माथे की बिन्दिया के साथ कण्डोम के पैकेट पर भी कमल का निशान छापकर चुनाव प्रचार सामग्री की थैलीयों में नहीं डलवा देवें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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