Tuesday, April 21, 2015

दुनिया में कौमी एकता की मिसाल: ख़्वाजा का उर्स


अब्दुल सत्तार सिलावट
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़। सरकार-ए-हिन्द। ग़रीब की फ़रियाद सुनने वालों का आस्ताना हमारे राजस्थान में। पाकिस्तान, बांग्लादेश ही नहीं, श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार), नेपाल और खाड़ी देशों में बसे अफगानिस्तान एवं अखण्ड भारत के सिर्फ मुसलमान ही नहीं, मुसलमानों से अधिक ख़्वाजा के दिवाने हैं गैर मुस्लिम। कौमी एकता में यकीन रखने वाले। सूफियाना इबादत को मानने वाले, सभी के क़दम हर साल उर्स मुबारक के मौके पर ख़्वाजा की चौखट अजमेर शरीफ़ की ओर बढऩे लगते हैं और वैसे तो साल भर हर इस्लामी महीने की छ: तारीख़ को ख़्वाजा के दरबार में छठी शरीफ़ की फ़ातिहा भी छोटा उर्स कहलाने लगी है।
सरकार-ए-हिन्द ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के उर्स मुबारक के झंडे की रश्म के साथ ही देश भर से पैदल आने वालों को अचानक दो दिन से तेज़ हुई गर्मी-लू के थपैड़ों और आग उगल रही डामर की सड़कों पर अपनी मन्नतों के लिए नंगे पाँव स$फर तय करते हुए भी देखा जा सकता है।
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के दरबार में कोई छोटा-बड़ा, अमीर, दौलतमंद, सियासतदां या वज़ीर-ए-वक़्त नहीं होता। यहाँ हाथों में फूल, सर पर चादर लिये सभी अपनी मुरादों की झोलीयां फैलाये ख़्वाजा के आस्ताने की तरफ बढ़ते नज़र आते हैं और ख़्वाजा के दर पर आने वाले करोड़पति से लेकर झौपड़पट्टी के ग़रीब तक सभी मुरादें माँगते हुए ही आते हैं इसलिए ख़्वाजा को ग़रीब को नवाज़ने वाला 'ग़रीब नवाज़' कहा जाता है।
सरहदों पर चाहे गोलियां चलें या जासूसी के ड्रोन पकड़े जाये, लेकिन ख़्वाजा के दिवानों को उर्स मुबारक में आने के लिए हुकुमत-ए-हिन्द कौमी एकता का संदेश देते हुए वीजा भी ज़ारी करती है और ग़रीब नवाज़ के दिवानों का बिना किसी कड़वाहट के मेहमान नवाज़ी के लिए खुले दिल से इस्तक़बाल भी करती है।
अजमेर शरीफ़ की तरफ आने वाले देश भर के 'हाइवे', रेल की पटरियां और हवाई सेवा के साथ छोटी गाडिय़ों में आने वाले ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के दिवानों का राजस्थान की सरज़मीं पर छोटे गाँव, कस्बों और शहरों में खान-पान, वाहन मरम्मत और पैदल ज़ायरीनों का गैर मुस्लिम भाई भी ख़ूब अच्छा इस्तक़बाल करते हुए राजस्थान की मेहमान नवाज़ी की परम्परा 'पधारो म्हारे देस' के नारे को 'पधारो म्हारा ग़रीब नवाज़ री नगरी' के रूप में चरितार्थ करते हैं।
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का आस्ताना जितना मुसलमानों की अक़ीदत का दरबार है उससे कई गुना ज़्यादा गैर मुस्लिम भी ख़्वाजा की चौखट पर अपनी मुरादों की दस्तक देते हैं। देश के राजनेता हों या बड़े उद्योगपति और फिल्म नगरी के सितारे हों या खेल जगत की हस्तियां। सभी ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर अपनी क़ामयाबी की मुराद लेकर आते हैं और झोलीयां भरने के बाद 'शुकराने' की हाजिरी भी देते हैं।

मोदी से पहले ओबामा ने पेश की चादर...
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का उर्स शुरू होते ही देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यों के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री अपनी ओर से 'चादर' पेश कर मुल्क में अमन, तरक्की, ख़ुशहाली की मुराद मांगते हैं और इस बार भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से 'चादर' पेश की गई तथा विदेश से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा की ओर से ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर अक़ीदत के साथ चादर पेश की गई। राजस्थान एवं हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल कल्याण सिंह की ओर से भी ख़्वाजा के दरबार में चादर पेश की गई।
जब राजनेताओं और अमेरिका से ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर 'चादर' पेश हो चुकी है तब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से अब तक 'चादर' नहीं आने पर चर्चाओं का बाज़ार गर्म हैं। राजनीति के पंडित बता रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी की गुजरात टीम के चाणक्य मोदी के नाम से ख़्वाजा के दरबार में चढ़ायी जाने वाली 'चादर' के गुण-लाभ देख रहे हैं। बताया जा रहा है कि मुसलमानों की टोपी-रूमाल से दूर रहने वाले नरेन्द्र मोदी द्वारा ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर 'चादर' चढ़ाने से हिन्दू कट्टरपंथियों की नाराज़गी हो सकती है या साक्षी महाराज की टीम के भगवा राजनेताओं में भी ग़लत संदेश जा सकता है। नरेन्द्र मोदी की टीम ख़्वाजा की चौखट पर 'चादर' चढ़ाने को लेकर 'पशो-पेश' (असमंजस) में हैं फिर भी प्रधानमंत्री पद की परम्परा के अनुसार ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर 'चादर' पेश करने से पहले कट्टरपंथियों को विश्वास में लेने के प्रयास चल रहे हैं जिससे 'चादर' की ख़बर के साथ ही 'उल्टे-सुल्टे' बयानबाजी से बचा जा सके।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक महका राजस्थान के प्रधान सम्पादक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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