Saturday, April 4, 2015

पुलिस की खाकी वर्दी का 'इकबाल' बुलन्द रहे


भारत सरकार नियंत्रक महालेखा परिक्षक (सीएजी) की वर्ष 2009 से 2014 तक की रिपोर्ट में पुलिस विभाग की वित्तीय प्रबंधन पर की गई रिपोर्ट पर आधारित समीक्षा...
ए.एस. सिलावट                                     
आमजन में विश्वास-अपराधियों में भय, राजस्थान पुलिस के इस स्लोगन को अक्सर लोग उल्टा कर मजाक बनाते हैं, लेकिन अगर सड़क पर एक्सीडेन्ट हो जाये और पुलिस को फोन करने के बाद देर से पहुँचे तो हम पुलिस से हाथापाई तक करतेे हैं, उनसे उलझते हैं, पुलिस के खिलाफ आक्रोश पैदा हो जाता है, जिसने टक्कर मारी उसे भूल जाते हैं।
हजारों पुलिस वालों के लवाजमे में से कोई शराब पीकर लडख़ड़ाता नजर आ जाये तो 'खाकी हुई शर्मसार' की खबरें तीन दिन तक गूंजती है। वैसे हमारे बुजुर्ग भी कह गये हैं कि पुलिस वाले की ना दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी और आजकल के जुआरी, सटोरिये, लड़कियों की स्कूल के आसपास छेडख़ानी करते पकड़े जाने वाले शराबी आवारा छुटभैय्या कहते हैं कि पुलिस भ्रष्ट है और आम आदमी कहता है कि पुलिस रिपोर्ट भी नहीं लिखती है। आमजन ये सारी बातें पुलिस के बारे में सिर्फ सुनता ही है, आमजन को पुलिस पर विश्वास या भय दोनों से लेना देना ही नहीं है। हाँ इतना जरूर है कि आमजन पुलिस सुरक्षा के विश्वास को मानकर चैन की नींद सोता है। 
आप जिस पुलिस को कोसते हो, गालियां देते हो या भ्रष्ट कहते हो, उसकी असली जिन्दगी क्या है? पुलिस की मजबूरियां, पुलिस पर राजनेताओं और अफसरों का दोहरा शासन कैसे चलता है? इसकी एक छोटी रिपोर्ट आप सभी के सामने दैनिक महका राजस्थान के प्रधान सम्पादक ए.एस. सिलावट पेश कर रहे हैं:-
भारत सरकार के नियन्त्रक महालेखा परिक्षक जिसे हम आम भाषा में सीएजी कहते हैं ने 2009 से 2014 की रिपोर्ट में बताया है कि राजस्थान पुलिस 5 साल तक केन्द्र सरकार की सहायता से ही चलती रही है। राजस्थान सरकार ने अपना अंशदान 96 करोड़ रूपया दिया ही नहीं।
अपराधियों को पकडऩे के लिए गांवों में जाने पर पुलिस पर हमला, प्रदर्शनों और जुलुस को रोकने पर पुलिस पर पथराव, बड़े अपराधियों का पीछा करने पर पुलिस फायरिंग के समाचार आप रोज पढ़ते हैं। भारत सरकार की सीएजी रिपोर्ट कहती है कि 2009 से 2014 तक राजस्थान पुलिस के पास शारीरिक सुरक्षा के लिए बुलेट प्रुफ जैकेट नहीं थे। सर पर हैलमेट और इन सब से अलग हटकर शर्मसार करने वाली रिपोर्ट है कि पुलिस के जवानों के पास पर्याप्त मात्रा में लाठीयां भी नहीं थी। ड्यूटी पर दौडऩे से पहले थानों में एक-दूसरे से लाठीयां लेकर पाँच साल के कांग्रेस शासन में हमारी सुरक्षा करती रही राजस्थान पुलिस। 
आजकल अपराधियों के पास टाटा सफारी, फॉरच्यूनर, इन्डीवर और भी लग्जरी गाडियां मिल जाएंगी, लेकिन इन अपराधियों का पीछा करने के लिए राजस्थान पुलिस के पास पुरानी गाडियां, घिसे हुए टायर, 50 की स्पीड से अधिक दौड़ाने पर स्वयं ही बिखर जाये। ऐसा पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के काफिले में प्राटोकोल में दौड़ रही गाड़ी के साथ हुआ था जो रोहट के पास उलट गई थी और महिला पुलिस उप अधीक्षक गम्भीर घायल हो गईं थी। भारत सरकार की सीएजी रिपोर्ट कहती है कि राजस्थान पुलिस के पास जितने वाहनों की आवश्यकता है उससे मात्र 25 प्रतिशत वाहन ही उपलब्ध है जिनमें से अधिकतर 'खटाराÓ हैं। ऐसे में अन्य राज्यों के अपराधियों को पकडऩे के लिए प्राइवेट कार मंगवाने पर फरियादी कहते हैं कि पुलिस भ्रष्ट है, आप ही सोचें थानेदार क्या अपनी तनख्वाह में से टेक्सी का भुगतान करेगा।
वाहनों के बाद अस्त्र, शस्त्र पर भारत सरकार की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2009 से 14 तक कांग्रेस सरकार के पूर्व मुख्यमंंत्री अशोक गहलोत के शासन में विगत 12 साल में सर्वाधिक दो दर्जन साम्प्रदायिक दंगे हुए जिसमें गोपालगढ़, उदयपुर के पास सराड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री गहलोत के गृह जिले जोधपुर के पास बालेसर के दंगे शर्मसार करने वाले रहे हैं। सीएजी रिपोर्ट कहती है कि राजस्थान के नौ जिले संवेदनशील थे जिनमें 35 थाने अतिसंवेदनशील चिन्हित किये गये थे और इन थानों में जितने अस्त्र शस्त्र हथियारों की जरूरत थी इसके मुकाबले पुलिस के पास मात्र 10 प्रतिशत हथियार ही थे।
इसके अलावा भी भारत सरकार की सीएजी रिपोर्ट में बहुत सी ऐसी गम्भीर बातों का खुलासा किया है जिसे बताना हम पुलिस की मौजूदा छवि और सुरक्षा की दृष्टी से ठीक नहीं समझते हैं। सब कुछ बताने पर राजस्थान के अपराध जगत में पुलिस के प्रति थोड़ा बहुत बचा हुआ भय भी खत्म हो सकता है। आम आदमी के दिलों में 'खाकी' वर्दी और पुलिस का बुलन्द ईकबाल बना रहे इसी शुभकामना के साथ हम उम्मीद करते हैं कि आम आदमी भी पुलिस से उतना ही प्यार करे, सम्मान करे जितना आप डॉक्टर, पानी, बिजली विभाग के कर्मचारी, गांव के पटवारी, तहसीलदार और आपके घर के आगे सफाई करने वालों से करते हैं। जैसे सरकार के अन्य विभागों के अधिकारी, कर्मचारी आपकी सेवा में हैं वैसे ही पुलिस भी आपकी सुरक्षा में लगी है। फर्क सिर्फ इतना है कि अन्य कर्मचारी दस से पाँच और सिर्फ दिन में सेवा करते हैं जबकि पुलिस दिन-रात, चौबीस घंटे, सातों दिन और यहाँ तक कि होली-दिवाली-ईद पर भी आपके त्यौहार की शांति बनाये रखने के लिए अपने परिवार, बाल-बच्चों से दूर खाकी वर्दी में ड्यूटी करती है।

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