Wednesday, July 13, 2016

नेताओं की आँखों से पानी सूख गया हैः जल पुरूष


नेताओं की आँखों से पानी सूख गया हैः जल पुरूष

अब्दुल सत्तार सिलावट
जयपुर। दुनियाभर के देशों में विकास योजनाएं एजेंसियां और कम्पनियां बना रही है और भारत में भी ग्रामीण, मजदूर, गरीब और आदिवासियों के लिए विकास योजनाएं कम्पनियां और एजेंसियां ही बना रही है और इसके परिणाम में देश की जनता का विकास हो या नहीं हो योजना को बनाने वाली कम्पनियां खूब धन कमा रही है। यह कहना है जल पुरूष मेगसेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह का। आज की सरकारों के नेताओं का रिमोट अफसरशाही के हाथों में हैं और राजेन्द्र सिंह की बात की पुष्टी दिल्ली की रायसीना हिल्स के चारों ओर बैठे गगनचुम्बी, एयरकंडीशन सचिवालय की अफसरशाही ने कभी गांव की चौपाल नहीं देखी, खेत की मेड़ और गरीब की झौपड़ी में बैठे भूखे-प्यासे मासुमों की आँखों में शाम की रोटी का सपना नहीं देखा, लेकिन इनके विकास की योजनाएं वही अफसर बनाते हैं जिनका शरीर कभी बीच रास्ते में तेज बारिश में नहीं भीगा, कभी 48 डिग्री की गर्मी में पंचर मोटरसाइकिल को गांव के मिट्टी वाले रास्ते में से खींचकर दो तीन किलोमीटर दूर पंचर वाले की दुकान तक ले जाने का सौभाग्य नहीं मिला। इन अफसरों ने बर्फीली ठंडी हवाओं की रातों में रिक्शे वाले को दस पैबंद लगे कम्बल में किसी मकान या पेड़ की ओट में बिना नींद के आँखों में रात गुजारते हुए नहीं देखा है.... लेकिन मेरे देश के विकास की योजनाओं को बनाने वाले अफसरों की योजनाओं में सरकार द्वारा स्वीकृत हजारों करोड़ रूपये से गरीबों का भला हो या नहीं हो, किन्तु इन योजनाओं को लागू करवाने में लगी एजेंसियां, ठेकेदार, कम्पनियां और ब्यूरोके्रट्स आजादी के बाद के सत्तर साल से कमाकर मालामाल होते रहे हैं और अब तो लोकतंत्र के प्रहरी जिन्हें जनता चुनकर भेजती है वे भी इन अफसरों के सामने हाथ बांधे खड़े नजर आते हैं।
जल पुरूष राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि इक्कीसवीं शताब्दी में विश्व युद्ध होगा और यह जल युद्ध होगा। विश्व का तीसरा युद्ध जल युद्ध ही होगा। जल संरक्षण की मशाल जलाने वाले जल पुरूष राजेन्द्र सिंह जिन्हें रोमन मेगसेसे पुरस्कार विजेता की पहचान के साथ पूरी दुनिया में पानी की बात के लिए बुलाते हैं। गत वर्ष 2015 में स्टोकहोम वाटर पुरस्कार से भी राजेन्द्र सिंह को नवाजा गया। नाबार्ड बैंक के 35वां स्थापना दिवस पर जल संरक्षण पर नाबार्ड बैंक के मिशन की प्रशंसा करते हुए सिंह ने कहा कि बारिश को देखकर सरकारें खुश होती हैं, लेकिन बारिश के पानी को व्यर्थ बहने से रोकने, धरती में डालकर जल स्रोत बढ़ाने या नियमित उपयोग के लिए किसी योजना पर सरकारें ध्यान नहीं देती है।
राजेन्द्र सिंह ने कहा कि बारिश के पानी को दौड़ता है उसे चलना सीखा दो, उसके बाद रैंगना और अन्त में बहते पानी को धरती के गर्भ में डालकर सूरज की नजर से बचा लो तो बरसात का पानी हमें उज्जवल भविष्य की ओर ले जायेगा। भारत में कल तक महाराष्ट्र ऐसा राज्य था जहां विकास की गंगा बहती थी, लेकिन उसी महाराष्ट्र की आज किसानों की आत्महत्या वाले प्रदेश के रूप में पहचान रह गई है और इसका मुख्य कारण पानी के महत्व को नहीं समझा गया।
जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि पहले राजाओं का शासन बदलने से और आज देश की सरकारें बदलने से हिस्ट्री बदल जाती है, लेकिन भूगोल को बदलने में पीढ़ियों की कुर्बानी लग जाती है। ऐसा ही भूगोल पानी के संरक्षण, नदियों और तालाबों में बढ़ते मिट्टी के भराव से बरसात का पानी नदियों, तालाबों का रास्ता छोड़ आबादी और फसलों वाली उपजाऊ भूमि को बर्बाद करता हुआ गंदगी वाले नालों के साथ बह जाता है लेकिन उसे कल के भविष्य को उज्जवल रखने के लिए कोई भी बड़ी योजना या समाज का वर्ग आगे आकर जल बचाने का मिशन नहीं चला रहा है। सिंह ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि दुनिया की निगाहों में पानी सूख गया है और नेताओं की आँखों में भी अब तो पानी सूख गया है।

नाबार्ड मिशन, जल ही जीवनः अरोरा

नाबार्ड के 35वें स्थापना दिवस पर ग्रामीण विकास और जल संरक्षण में बैंक की भागीदारी पर प्रकाश डालते हुए नाबार्ड बैंक की मुख्य महाप्रबंधक सरिता अरोरा ने बताया कि ‘जल ही जीवन है’ के नारे को सम्बल देने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में नाबार्ड बैंक के सहयोग से वाटर शैड विकास परियोजनाओं को निरन्तर जारी रखा जायेगा तथा पूर्व में जिन क्षेत्रों में वाटर शैड लागू किये गये हैं उन्हें ऋण सुविधा बढ़ाकर प्रोत्साहित किया जायेगा।
श्रीमती सरिता अरोरा ने नाबार्ड द्वारा आयोजित ‘जल जागरूकता और जल संरक्षण’ विषय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि देश में जोहड़ जल संचयन पद्धति से हमारे पूर्वज देसी तकनीक से जल के स्रोतों को पुनर्जीवित करते थे और आज भी जोहड़ तकनीक कामयाब है। आपने कहा कि जल और मृदा संरक्षण की तकनीक से आमजन को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने के प्रयास सफल हो रहे हैं।
मुख्य प्रबंधक अरोरा ने 1982 में स्थापित नाबार्ड बैंक के 34 साल के सफर में कृषि और ग्रामीण विकास की उपलब्धियों में सहयोगी गैर सरकारी संस्थाओं, तकनीकी विशेषज्ञों, सरकार के विभागों और आमजन के सहयोग को नाबार्ड मिशन की सफलता का श्रेय देते हुए आभार व्यक्त किया।

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