Monday, July 11, 2016

बैंकों वाले प्रधानमंत्री के विरोध में


प्रधानमंत्री रोजगार योजना

बैंकों वाले प्रधानमंत्री के विरोध में

अब्दुल सत्तार सिलावट
गुजरात के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री पद तक नरेन्द्र मोदी को पहुंचाने वाले देश के करोड़ों युवा एवं बेरोजगारों के लिए बनी ‘प्रधानमंत्री रोजगार योजना’ को बैंकों के अधिकारी ‘फेल’ करने में लगे हैं। वैसे तो गरीबों को छोटे रोजगार के लिए ऋण, ग्रामीणों को पशु-डेयरी ऋण तथा किसानों को ट्रेक्टर खरीदने के लिए सरकारी योजनाओं में बैंक अधिकारियों को ऋण डूबता हुआ ही नजर आता है तथा जिला उद्योग केन्द्र, सहकारी समितियां, अल्पसंख्यक विभाग द्वारा जिन बेरोजगारों या जरुरतमंदों को ट्रेनिंग देकर, कई बार इनके इंटरव्यू लेकर, सरकारी अधिकारियों द्वारा ‘ठोक-बजाकर’ बैंकों को ऋण के लिए आवेदन भेजे जाते हैं, लेकिन बैंक अधिकारी बेरोजगारों की ऋण सिफारिश की राशि को 20 से 30 प्रतिशत कर देते हैं या सरकारी कर्मचारी गारन्टर मांग कर भगा देते हैं। ऐसे बेरोजगार छोटे काम धंधा करने वाले लोग अपनी योजना शुरु नहीं कर पाते हैं तथा बैंकों से मिला एक चौथाई ऋण भी फंस कर ‘डिफाल्टर’ बन जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दो साल के शासन में सबसे अधिक ध्यान देश के करोड़ों बेरोजगार युवाओं को ‘इज्ज़त की रोटी’ देने के लिए ‘प्रधानमंत्री रोजगार योजना’ में 35 प्रतिशत तक अनुदार देकर सेवा रोजगार पर ऋण सीमा दस लाख तथा उत्पादन ईकाई पर 35 लाख तक के ऋण बिना गारन्टर के देने की योजना को देश व्यापी लागू किया है। ऐसी ही एक योजना राजस्थान सरकार ने ‘भामाशाह’ के नाम से जिसमें सेवा रोजगार पर 5 लाख तथा उत्पादन ईकाई को दस लाख तक के ऋण पर ब्याज में 4 प्रतिशत के अनुदान का प्रोत्साहन दिया गया है।
बेरोजगार युवाओं के लिए जिला स्तर पर ‘डिस्ट्रीक्ट लेवल कमेटी’ बनाकर इस कमेटी में एक अधिकारी लीड बैंक, सभी बड़ी बैंकों के रिजनल मैनेजर, जिला उद्योग केन्द्र के महाप्रबंधक एवं तकनीकी अधिकारी एक साथ बैठकर आवेदनकर्ता का इंटरव्यू, उसके व्यवसाय के प्रति अनुभव एवं व्यापार कर पायेगा या नहीं यह क्षमता जांचकर बैंक को ऋण के लिए सिफारिश करते हैं, लेकिन इतने बड़े अधिकारियों के समूह द्वारा ऋण के लिए की गई सिफारिश को बैंक के एक छोटे से केबिन में बैठा बैंक का ऋण अधिकारी उस बेरोजगार युवा को ‘चोर’ की नजर से देखना शुरु कर देता है। सबसे पहले अभी ‘क्लोजिंग’ है, अभी हाफ ईयर क्लोजिंग है, अभी कोटा पूरा हो गया या फिर एक सरकारी कर्मचारी की गारन्टी लेकर आ जाना, इन सबके बाद भी यदि युवा बेरोजगार बैंक का पीछा नहीं छोड़ता है तो उसे सरकारी अधिकारियों की कमेटी द्वारा स्वीकृत दस लाख की फाइल को कांट-छांट कर दो लाख का ऋण स्वीकृत कर देते हैं। अब जिस बेरोजगार ने दस लाख की योजना बनाई थी वह दो लाख में तो व्यापार नहीं कर सकता, तब यह दो लाख भी व्यापार शुरु करने के चक्कर में ‘इधर-उधर’ फंसकर बैंक का ‘डिफाल्टर’ हो जाता है और बैंक के कौने वाले केबिन में बैठे अधिकारी की बेरोजगार के प्रति फाइल हाथ में आते ही की गई ‘भविष्यवाणी’ सही साबित हो जाती है।
अब बैंक अधिकारियों का दूसरा ‘फण्डा’ भी समझ लिया जाये। किसी योजना के लिए 100 फाइलें पैंडिंग है और इनकी कुल राशि पांच करोड़ बनती है तथा सरकारी बजट से एक करोड़ की राशि मिली है तब इन सौ फाइलों में ‘समान’ राशि वितरण कर सभी पैंडिंग फाइलों को ‘क्लीयर’ कर देते हैं। अब सात लाख के आवेदन को भी एक लाख तथा दस लाख के आवेदन को भी एक लाख का ऋण देकर बैंक वाले शत-प्रतिशत ऋण का लक्ष्य तो पूरा कर लेते हैं, लेकिन वह बेरोजगार इज्ज़त की रोटी कमाने के लिए अपनी योजना अनुसार व्यापार तो नहीं कर पाता है बल्कि बैंक की लिस्ट में ‘डिफाल्टर’ जरूर हो जाता है।
सुझावः बदलाव और योजना की सफलता के लिए प्रधानमंत्री रोजगार योजना के लिए भारत सरकार जो करोड़ों रूपये की राशि बैंकों को सुपुर्द करती है वह राशि बेरोजगारों को ऋण स्वीकृत करने वाली कमेटी या जिला कलेक्टर के मार्फत बिना बैंकों को फाइल भेते स्वयं कमेटी द्वारा चैक जारी कर ऋण दिया जाना चाहिये। जिससे बेरोजगारों के लिए प्रधानमंत्री की योजना सफल हो, बेरोजगार युवाओं को सीधा लाभ मिले तथा प्रधानमंत्री की बेरोजगारों को आर्थिक मदद की योजना को ‘असफल’ करने के मिशन में लगे बैंक अधिकारियों से बेरोजगारों को मुक्ति मिले।


‘अर्जुन’, अब तो तीर चला दो

राजस्थान के बीकानेर सांसद अर्जुनराम मेघवाल हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में वित्त राज्य मंत्री बनाये गये हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बेरोजगारों को रोजगार देने की योजना को क्रियान्वित करने वाले उद्योग विभाग में तीस साल तक नौकरी कर भारतीय प्रशासनिक सेवा और अब संसद के गलियारों में बैंकों की कमाण्ड वाले मंत्रालय के मंत्री भी हैं।
केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल प्रधानमंत्री रोजगार योजना में बैंकों के अधिकारियों द्वारा बेरोजगारों को ऋण की सिफारिश उद्योग विभाग द्वारा करने के बाद कैसे चक्कर लगवाते हैं। उन्हें चोर समझकर सरकारी विभाग की सिफारिश की गई राशि का कुछ हिस्सा देकर जानबूझकर उसे ‘चोर’ बनने पर मजबूर कर देते हैं।
केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपने युवाओं को रोजगार, ईज्ज़त की जिन्दगी को साकार करने के लिए ‘पहला तीर’ बैंकों के मार्फत ऋण वितरण की नीति को बदलकर सीधे कलेक्टर, जिला उद्योग केन्द्र के मार्फत ऋण दिया जाना चाहिये।
सरकार की हजारों करोड़ की योजनाएं पेयजल, सड़कें, ग्रामीण विकास मनरेगा जैसी योजनाएं यदि गांव का सरपंच, पटवारी, तहसीलदार और एसडीएम बिना भ्रष्टाचार के चला सकते हैं जो प्रधानमंत्री रोजगार योजना के युवाओं को जिला कलेक्टर और जिला उद्योग केन्द्र के अधिकारी बहुत अच्छी तरह से बिना भ्रष्टाचार के सफल बना सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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