Friday, March 27, 2015

अटलजी नहीं, भारत रत्न स्वयं हुआ सम्मानित...


ए.एस. सिलावट                                                             
संवेदनशील हृदय, वाक चातुर्यता, सीधे सरल और अपने विरोधियों के दिलों में भी अपनेपन का स्थान रखने वाले भारत के एक सर्व व्यापी, सर्व जाति-धर्म एवं राजनैतिक नेताओं के हृदय सम्राट अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित कर सरकार स्वयं को गौरान्वित महसूस कर रही होगी, लेकिन सच्चाई तो यह है कि आज अटलजी नहीं हमारा सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न स्वयं 'सम्मानित' हुआ है और यही कारण है कि अटल जी को सम्मानित करने भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी स्वयं सभी 'प्रोटोकोल' तोड़कर भारत रत्न का सम्मान देने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के घर गये। उनके साथ अपने राजनैतिक जीवन के अविस्मरणीय क्षणों को 'शेयर' किया।
अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ से राजनैतिक जीवन शुरु कर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना और दो लोकसभा सदस्यों से आज के चौंकाने वाले आंकड़े तक पहुँचाने में अपना योगदान ही नहीं अपने जीवन की 'आहूति' दी है। अटल जी किसी राजनैतिक घराने से नहीं आते हैं और ना ही किसी जाति-धर्म के झंडे को लेकर लोकसभा में पहुँचकर प्रधानमंत्री बने, लेकिन फिर भी आपकी प्रतिभा, अटल जी के राजनैतिक संघर्ष, जनसेवा के साथ कौमल हृदय वाले कवि अटल जी का पंडित जवाहरलाल नेहरु भी सम्मान करते थे। दक्षिण के नेता करुणानिधी, फारू$ख अब्दुल्लाह, ममता बनर्जी, जयललिता ऐसे कई नाम है जो जनसंघ या भाजपा की पृष्ठभूमि वाले एक मात्र नेता अटल जी का सम्मान भी करते थे और अपने मन की बात भी करते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी नौ बार सांसद बनकर आज़ादी के बाद पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाने का श्रेय ले चुके हैं। 1996 में अटल जी पहली बार प्रधानमंत्री बने, 13 दिन चली इस सरकार के अविश्वास प्रस्ताव के बाद संसद में दिये गये भाषण को भारत के राजनैतिक इतिहास में आज भी याद किया जाता है। सरकार गिरने के बाद भी संसद में देश के विकास, राजनैतिक मजबूरियां और फिर सरकार बनाने का संकल्प ही जनता के दिलों को छू गया और अगली बार अटल जी पूरी ता$कत के साथ प्रधानमंत्री बनकर देश को नई सोच, नई दिशा दे गये।
अटल के वाकचातुर्यता और शब्दों से मोहित करने के कई उदाहरण हैं, लेकिन 1999 में भारत-पाक रिश्तों को सुधारने के प्रयास में लाहोर बस सेवा शुरु कर जब स्वयं लाहोर पहुँचे तब गवर्नर हाऊस में उनकी कविता 'ज़ंग नहीं होने देंगे, अब ज़ंग नहीं होने देंगे' सुनकर गवर्नर सहित वहाँ के हुकमरान भावुक हो गये और अटल जी को गले लगाने वालों की कतार लग गई।
दक्षिण में हिन्दी विरोधी आन्दोलन के नेता डीएमके के अन्ना दुरई उन दिनों अटल जी के साथ राज्यसभा मेम्बर थे और हिन्दी विरोधी नेता होने के बावजूद उन्होनें कहा था कि हम अटल जी की कविता जैसी हिन्दी का विरोध नहीं करते हैं और अटल जी जैसी हिन्दी बोलते हैं उसका भी विरोध नहीं करते हैं। अटल जी की देश भक्ती, देश को सर्वोच्च मानने और देश की अस्मिता के लिए कोई राजनैतिक विरोध नहीं। इस भावना से सभी विरोधी पार्टीयों के नेता भी अटल जी का सम्मान करते थे।
अटल जी की कश्मीर यात्रा में वहाँ के लोगों ने जब आपसे पूछा कि कश्मीर समस्या का समाधान आप संविधान के दायरे में करेंगे या कोई और हल है आपके पास। इसके जवाब में अटल जी ने कहा कश्मीर समस्या का समाधान 'इंसानियत' के दायरे में करुंगा और कश्मीरी भी अटल जी के दिवाने हो गये। अटल जी ने बातों से आगे बढ़कर देश की सुरक्षा के लिए पोकरण परिक्षण भी किया जिससे दुनिया की बड़ी शक्तियों को हमारी ताकत का संदेश भी गया।
आज मोदी सरकार के विशाल सांसदों के आंकड़ों वाली भारतीय जनता पार्टी की नींव 'सेक्यूलर' बनाकर अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के सभी धर्मांे, जातियों, वर्गों के लिए दरवाजे खोले थे और उसी का परिणाम है आज देश का मुसलमान भी भाजपा में बढ़ चढ़कर राजनैतिक भागीदारी निभा रहा है और साधारण कार्यकर्ता से लेकर देश के सर्वोच्च सदन लोकसभा एवं भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी दिखाई दे रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक महका राजस्थान के प्रधान सम्पादक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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